रामनगर: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित मोहान कस्बे में वर्षों से संचालित आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं की प्रतिष्ठित सरकारी कंपनी आईएमपीसीएल (Indian Medicines Pharmaceutical Corporation Limited) अब संकट के दौर से गुजर रही है। केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय के अधीन आने वाली इस इकाई के विनिवेश की खबरों ने न केवल कर्मचारियों में बेचैनी पैदा कर दी है, बल्कि आसपास के हजारों ग्रामीण परिवारों को भी आर्थिक असुरक्षा के साये में धकेल दिया है।
आईएमपीसीएल की स्थापना वर्ष 1978 में हुई थी और 1983 से इसने दवाओं का उत्पादन शुरू किया। यह इकाई वर्तमान में करीब 38 एकड़ भूमि पर फैली है और सालाना लगभग 200 करोड़ रुपये का उत्पादन कर रही है। यह कंपनी पूरे भारत के सरकारी अस्पतालों, जन औषधि केंद्रों, और संस्थानों को गुणवत्तापूर्ण आयुर्वेदिक एवं यूनानी दवाएं सप्लाई करती है।
कर्मचारियों के अनुसार, पिछले वर्ष कंपनी ने करीब 18 से 19 करोड़ का शुद्ध लाभ कमाया और सरकार को अच्छा-खासा डिविडेंड भी प्रदान किया। यह इकाई पूरी तरह लाभ में चल रही है, फिर भी सरकार इसकी 98% हिस्सेदारी बेचने की तैयारी में है।
आजीविका पर खतरा
इस विनिवेश से सबसे बड़ा खतरा उन हजारों ग्रामीणों पर मंडरा रहा है, जिनकी रोज़ी-रोटी सीधे या परोक्ष रूप से इस कंपनी से जुड़ी है। मोहान और उसके आसपास के करीब 8 से 10 ग्राम पंचायतों के 500 से अधिक कर्मचारी यहां स्थायी व अस्थायी रूप से कार्यरत हैं। इसके अलावा 20,000 से अधिक ग्रामीण अप्रत्यक्ष रूप से इस इकाई से लाभान्वित होते हैं, जैसे—जड़ी-बूटी सप्लाई करने वाले, परिवहन कर्मी, दैनिक मज़दूर और लोकल व्यापारी।
कर्मचारी 3 जनवरी 2024 से लगातार धरने पर बैठे हैं, लेकिन अब तक न तो मंत्रालय से और न ही प्रबंधन से कोई स्पष्ट सूचना या लिखित आश्वासन मिला है। प्रबंधन से मिली सूचना के अनुसार, दिसंबर 2025 तक विनिवेश की प्रक्रिया पूरी हो सकती है। इससे कर्मचारियों को यह आशंका है कि उन्हें किसी भी दिन कंपनी से बाहर किया जा सकता है।
स्थानीय ग्रामीण राकेश कुमार ने बताया कि उनके गांव में लगभग 100 परिवार निवास करते हैं, जिनमें से 98 परिवारों के सदस्य कंपनी में कार्यरत हैं। उनके अनुसार, यदि कंपनी निजी हाथों में चली गई, तो इन परिवारों की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से चरमरा जाएगी।
क्या होगा विनिवेश के बाद?
विशेषज्ञों और कर्मचारियों का कहना है कि यदि कंपनी का विनिवेश हुआ, तो निजी कंपनियों का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होगा। इससे:
-
दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं,
-
आयुर्वेदिक दवाओं की पारंपरिक प्रक्रिया में बदलाव आ सकता है,
-
हजारों स्थानीय लोगों की रोज़गार छिन सकता है,
-
और कंपनी की जगह पर रिजॉर्ट या अन्य प्राइवेट प्रोजेक्ट शुरू किए जा सकते हैं।
कर्मचारी विनिवेश रोकने और अपनी नौकरियों की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। वे सरकार से इस लाभकारी इकाई को संरक्षित करने की अपील कर रहे हैं, जो न केवल गुणवत्तापूर्ण दवाएं प्रदान करती है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी है। स्थानीय समुदाय और कर्मचारी इस उम्मीद में हैं कि सरकार उनकी आवाज़ सुनेगी और इस महत्वपूर्ण इकाई को निजी हाथों में जाने से रोकेगी।