Friday, June 20, 2025
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अवैध खनन का अड्डा बनी पिंडर नदी, पोकलैंड से खुलेआम हो रहा दोहन

NTI (थराली) : चमोली जिले के थराली क्षेत्र में पिंडर नदी में चैनलाइजेशन के तहत उपखनिज निकालने के लिए पट्टे आवंटित किए गए हैं। इन दिनों उपखनिज दोहन के कारण पिंडर नदी पर्यावरणीय संकट का सामना कर रही है। बल्कि नदी के प्राकृतिक बहाव को भी बदला जा रहा है, जो थराली नगर की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है। नदी के दोनों किनारों पर उपखनिज उठान के लिए पट्टे तो आवंटित कर दिए गए हैं, लेकिन जिन मानकों के तहत ये कार्य होना था, वे पूरी तरह से नजरअंदाज किए जा रहे हैं। पॉकलैंड जैसी भारी मशीनों का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है, जबकि विभागीय अधिकारियों का दावा है कि ऐसी किसी भी मशीन के उपयोग की अनुमति किसी को नहीं दी गई है।

यह विरोधाभास प्रशासन की कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। यदि अनुमति नहीं है, तो फिर इतनी भारी मशीनें नदी में कैसे संचालित हो रही हैं? क्या प्रशासन की नजर से यह सब ओझल है, या फिर जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है? पिंडर नदी का बहाव प्रभावित हो रहा है, स्थानीय पारिस्थितिकी को खतरा उत्पन्न हो रहा है, और नदियों के किनारे बसे लोगों की सुरक्षा भी अब संकट में है।

पिंडर नदी न केवल एक प्राकृतिक जलस्रोत है, बल्कि स्थानीय जनजीवन और पारिस्थितिकी तंत्र की रीढ़ भी है। यह नदी सदियों से खेती, पेयजल और मछली पालन जैसे अनेक कार्यों का आधार रही है। लेकिन आज यह नदी एक नए संकट का सामना कर रही है, जो उसके अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा करता है।

सरकार द्वारा नदी के चैनलाइजेशन के अंतर्गत उपखनिज (रेत, बजरी, पत्थर) निकासी के लिए पट्टे आवंटित किए गए थे। उद्देश्य था—नदी की सफाई के साथ-साथ राज्य की आर्थिक गतिविधियों को गति देना। लेकिन इस योजना को पट्टाधारकों द्वारा मुनाफे के लालच में एक तरह से अपहरण कर लिया गया है। निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, उपखनिज उठान सिर्फ सीमित संसाधनों और स्थानीय श्रम से किया जाना था।

इस योजना में यह स्पष्ट किया गया था कि भारी मशीनों का प्रयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित रहेगा, क्योंकि इससे नदी के प्राकृतिक प्रवाह और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँच सकता है। इसके बावजूद, नदी के तटों पर पॉकलैंड जैसी मशीनें खुलेआम काम कर रही हैं, और प्रशासन इस पर चुप्पी साधे हुए है।

पॉकलैंड मशीनों का अवैध उपयोग

पट्टाधारकों को सरकार द्वारा सीमित अधिकार दिए गए थे, जिनमें यह स्पष्ट उल्लेख था कि खनन कार्य पारंपरिक या कम भार वाली मशीनों से ही किया जाएगा। लेकिन ground reality कुछ और ही बयां कर रही है। पॉकलैंड जैसी भारी मशीनें, जो आम तौर पर निर्माण स्थलों पर गहरी खुदाई के लिए प्रयोग होती हैं, अब नदी के किनारों पर तैनात हैं।

ये मशीनें दिन-रात उपखनिज को निकाल रही हैं, और इस प्रक्रिया में न सिर्फ नदी की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँच रहा है, बल्कि उसकी धारा को भी मनमाने ढंग से मोड़ा जा रहा है। यह स्थिति पर्यावरणीय आपदा की ओर संकेत करती है। भारी मशीनों से नदी की सतह गहराई में कट रही है, जिससे अचानक बाढ़ और भू-धंसान जैसे खतरे उत्पन्न हो सकते हैं।

इसके अतिरिक्त, स्थानीय मजदूरों के रोजगार पर भी संकट गहराता जा रहा है। जहाँ पहले हाथों से खुदाई कर रोजगार उपलब्ध कराया जाता था, अब वही काम मशीनें कर रही हैं, जिससे सामाजिक असंतुलन भी पैदा हो रहा है। इससे साबित होता है कि यह समस्या केवल पर्यावरण की नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक असमानता की भी है।

पर्यावरणीय मानकों की अवहेलना

भारत में रिवर ड्रेजिंग के लिए सख्त पर्यावरणीय नियम निर्धारित किए गए हैं। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और जल संसाधन मंत्रालय द्वारा बनाए गए दिशा-निर्देश स्पष्ट करते हैं कि उपखनिज निकासी किस प्रकार, कितनी मात्रा में और किन संसाधनों से की जा सकती है। लेकिन पिंडर नदी में इन मानकों की खुल्लमखुल्ला अवहेलना हो रही है।

जब नदी की धारा को मशीनों से मोड़ा जाता है, तो यह न केवल उसकी दिशा को बदलता है, बल्कि उसके किनारों की संरचना को भी कमजोर करता है। इससे न केवल जैव विविधता को खतरा है, बल्कि मानसून के दौरान बाढ़ का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है। नदी की गहराई और चौड़ाई में असंतुलन आने से जल स्तर अनियंत्रित हो सकता है।

नदी के तल में मौजूद जैविक जीवन—जैसे मछलियाँ, कछुए, और सूक्ष्म जीव—इन भारी मशीनों के दबाव में आकर नष्ट हो जाते हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि यह सिर्फ खनन नहीं, बल्कि एक पारिस्थितिकी तंत्र का सुनियोजित विध्वंस है। और यह सब सरकारी अनुमति के बिना हो रहा है, जो कि और भी चिंताजनक है।

प्रशासन की अनदेखी और लापरवाही

पिंडर नदी में जो कुछ हो रहा है, वह प्रशासनिक मुख्यालय से महज़ डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर हो रहा है। इसके बावजूद, स्थानीय तहसील प्रशासन और विभागीय अधिकारी इसे देख नहीं पा रहे हैं, या फिर देखना नहीं चाहते। यह स्थिति विभागीय लापरवाही की पराकाष्ठा को दर्शाती है।

यदि किसी को अनुमति नहीं है, तो फिर भारी मशीनें कैसे वहाँ पहुँच रही हैं? क्या ये मशीनें आसमान से टपकी हैं? या फिर इनके आने-जाने और संचालन में प्रशासन की किसी न किसी स्तर पर संलिप्तता है? जनता के मन में ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है।

ऐसा भी हो सकता है कि उच्च अधिकारियों तक इस गड़बड़ी की जानकारी नहीं पहुँच रही है, लेकिन फिर यह भी प्रशासनिक विफलता है। निरीक्षण टीमों का अभाव, ज़मीनी हकीकत की अनदेखी, और जनता की शिकायतों की अनसुनी इस स्थिति को और भयावह बना रही है।

थराली के एसडीएम पंकज भट्ट सामने आए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया है कि रिवर ड्रेजिंग के तहत किसी भी प्रकार की भारी मशीन के प्रयोग की अनुमति नहीं दी गई है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि यदि कोई ऐसा करता पाया गया तो उसके विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी।

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