उत्तराखंड के तराई और मैदानी इलाकों में किसान पारंपरिक फसलों से हटकर नए विकल्प तलाश रहे हैं, और लोंगान (Dimocarpus longan) ऐसा ही एक आकर्षक विकल्प उभर रहा है। यह फल, जो सैपिनदासी परिवार से संबंधित है, लीची की बहन के रूप में जाना जाता है और रामभूटान का भाई। हाल ही में पंतनगर के गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (GBPUAT) द्वारा आयोजित 118वें अखिल भारतीय किसान मेले में पश्चिम बंगाल की एक नर्सरी ने लोंगान के थाईलैंड वैरायटी के पौधों को पहली बार प्रदर्शित और बेचा। स्टॉल मालिक आयन मंडल के अनुसार, ग्राफ्टिंग तकनीक से तैयार इन पौधों को गमले में उगाकर मात्र दो साल में व्यावसायिक फल प्राप्त किया जा सकता है। यह फल लीची सीजन (मई-जून) के बाद जुलाई-अगस्त में उपलब्ध होता है, जिससे बाजार में इसकी मांग बनी रहती है।
लोंगान की उत्पत्ति दक्षिणी चीन से हुई है और भारत में इसे 1798 में पेश किया गया। यह उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में उगता है, जहां ठंडी शुष्क अवधि (15°C से कम, अक्टूबर-फरवरी) फूलने के लिए आवश्यक है। गर्मी में 27-35°C और 1200-1400 मिमी वर्षा आदर्श है। उत्तराखंड के तराई क्षेत्र, जैसे उधम सिंह नगर, अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी और उपयुक्त जलवायु के कारण इसके लिए उपयुक्त हैं। हालांकि, भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल में सीमित है, लेकिन शोध से पता चलता है कि उत्तराखंड में विस्तार की संभावना है। ICAR के अनुसार, लोंगान की बढ़ती मांग औषधीय और स्वास्थ्य गुणों के कारण है, जो किसानों को उच्च लाभ दे सकती है।
पौधे की रोपाई वर्षा की शुरुआत में 60x60x60 सेमी गड्ढों में की जाती है, जिसमें जैविक खाद मिलाई जाती है। स्पेसिंग 6×6 से 12×12 मीटर (70-300 पौधे/हेक्टेयर) होती है। प्रचार मुख्य रूप से एयर लेयरिंग (80-90% सफलता) या ग्राफ्टिंग से होता है। युवा पेड़ों में प्रूनिंग से खुली छतरी बनाई जाती है, जबकि परिपक्व पेड़ों में हार्वेस्टिंग के बाद पैनिकल हटाए जाते हैं। पोषण के लिए प्रति पेड़ 10 किलो एनपीके (14:14:21) और 6-10 किलो जैविक खाद दी जाती है। फल पतले करने से आकार बढ़ता है। कीट जैसे स्केल कीड़े और रोग जैसे लाल शैवाल का नियंत्रण कीटनाशकों या जैविक तरीकों से किया जाता है।
एयर-लेयर्ड पेड़ चौथे साल से फल देते हैं (10-15 किलो/पेड़), जो 10वें साल तक 60 किलो और 15वें साल तक 100-190 किलो पहुंच सकता है। थाईलैंड वैरायटी में 2 साल में 15-20 किलो और 4 साल में 40-50 किलो उत्पादन संभव है। फल का वजन 35 ग्राम तक, और बाजार मूल्य 250-300 रुपये/किलो। हार्वेस्टिंग मध्य-देर गर्मियों में (जुलाई-सितंबर) की जाती है, जब छिलका चिकना और स्वाद मीठा हो।
लोंगान में लीची जैसा खट्टापन नहीं, बल्कि 18-25% मीठापन (15-23° ब्रिक्स टीएसएस) और सुगंध है। फल के अंदर सफेद गूदा (67-78% वजन) और गोल बीज होता है। पोषण (प्रति 100g): प्रोटीन 1.31g, कार्बोहाइड्रेट 15.14g, विटामिन सी 84mg, थायमिन 0.031mg, पोटेशियम 266mg, तांबा, जिंक, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और आयरन। यह अनिद्रा, पेट दर्द, घबराहट और जहर के इलाज में चीनी चिकित्सा में उपयोग होता है, साथ ही स्मृति बढ़ाता है।
| पोषक तत्व | मात्रा (प्रति 100g) | लाभ |
|---|---|---|
| विटामिन सी | 84mg | इम्यूनिटी बढ़ाता है |
| पोटेशियम | 266mg | हृदय स्वास्थ्य |
| थायमिन (B1) | 0.031mg | ऊर्जा उत्पादन |
| आयरन | 0.13mg | रक्त निर्माण |
| मैग्नीशियम | 10mg | मांसपेशी कार्य |
भारत में लोंगान टॉप 10 व्यावसायिक फलों में शामिल है, लेकिन उत्पादन सीमित। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, बिहार में 2004 से अध्ययन चल रहे हैं। वैरायटी जैसे गंदकी लोंगान-1 (20-23° ब्रिक्स, 69-73% गूदा) उत्तर भारत के लिए उपयुक्त। उत्तराखंड में तराई किसान इसे अपनाकर आय दोगुनी कर सकते हैं, लेकिन पानी की कमी या >40°C गर्मी से छिलका भूरा हो सकता है। बाजार में निर्यात गुणवत्ता (A ग्रेड: 14-18g/फल) की मांग है।
| वैरायटी | विशेषताएं | उत्पादन समय |
|---|---|---|
| ब्यू ख्यू | 22° ब्रिक्स, मोटा छिलका | मध्य जुलाई |
| चॉम्पू | 21-22° ब्रिक्स, सुगंधित | मध्य जून |
| फुयान | 18g फल, छोटा बीज | कैनिंग के लिए |
| गंदकी लोंगान-1 | 20-23° ब्रिक्स, उच्च गूदा | भारत में नई |
यह फल न केवल आर्थिक लाभ देता है बल्कि स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है, जिससे उत्तराखंड के किसान इसे अपनाने पर विचार कर सकते हैं।

