NTI: उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में खेती से लोगों का मोहभंग हो रहा है और इसके पीछे एक बड़ी वजह है बंदरों का बढ़ता आतंक। ये बंदर न सिर्फ फसलों को तबाह कर रहे हैं, बल्कि आए दिन लोगों पर हमले भी कर रहे हैं। इस समस्या से निपटने के लिए हरिद्वार के रसियाबढ़ में स्थित बंदर नसबंदी सेंटर (Monkey Sterilization Centre) एक अनूठा प्रयास बनकर उभरा है। साल 2015 से शुरू हुए इस सेंटर में अब तक 80 हजार से अधिक बंदरों की नसबंदी की जा चुकी है, जिससे उनकी बढ़ती आबादी पर अंकुश लगाने में मदद मिल रही है।
हरिद्वार-नजीबाबाद रोड पर स्थित रसियाबढ़ में यह विशेष सेंटर गढ़वाल के विभिन्न जिलों से पकड़े गए बंदरों की नसबंदी के लिए बनाया गया है। यहां एक अत्याधुनिक ऑपरेशन थिएटर है, जहां 12 लोगों की टीम काम करती है। इसमें दो वरिष्ठ डॉक्टरों के साथ 10 कर्मचारी शामिल हैं, जो बंदरों को पकड़ने, उनकी नसबंदी करने और फिर जंगल में छोड़ने तक का काम संभालते हैं। सेंटर में एक बार में 300 बंदरों को रखने की क्षमता है और मौजूदा समय में 100 से अधिक बंदर यहां मौजूद हैं।
सेंटर की पशु चिकित्सक डॉ. प्रेमा बताती हैं कि बंदरों को पहले उन इलाकों से पकड़ा जाता है जहां उनकी संख्या ज्यादा होती है, खासकर नगर पालिकाओं से शिकायत मिलने पर। पकड़े गए बंदरों को पिंजरे में लाकर सेंटर में उनका स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है। अगर कोई मादा बंदर गर्भवती पाई जाती है, तो उसे उसी जगह छोड़ दिया जाता है, ताकि वह अपने झुंड से अलग न हो। स्वस्थ बंदरों को एनेस्थीसिया देकर बेहोश किया जाता है, जिसके बाद नसबंदी की जाती है।
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नर बंदर की नसबंदी: इसमें मात्र 1 मिनट लगता है।
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मादा बंदर की नसबंदी: इसमें 2-3 मिनट का समय लगता है।
नसबंदी के बाद बंदरों को 2-3 दिनों तक निगरानी में रखा जाता है और फिर जंगल में छोड़ दिया जाता है। डॉ. प्रेमा कहती हैं, “10 साल के अनुभव के बाद यह काम अब आसान लगता है। हम हर पहलू का ध्यान रखते हैं।”
वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. अमित ध्यानी बताते हैं कि सेंटर में अत्याधुनिक अल्ट्रासाउंड मशीन और दूरबीन जैसी तकनीकों का इस्तेमाल होता है। इससे बंदरों की बारीकी से जांच की जाती है, खासकर यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई मादा बंदर गर्भवती न हो। डॉ. ध्यानी कहते हैं, “नसबंदी से बंदरों की संख्या में कमी आई है। 2022 में इनकी संख्या 1.5 लाख थी, जो अब घटकर 1.1 लाख रह गई है। अगले 7-8 सालों में इसे और नियंत्रित करने की उम्मीद है।”
वन विभाग की एसडीओ पूनम के अनुसार, साल 2015 से अब तक 98,000 बंदरों को सेंटर में लाया जा चुका है, जिनमें से 80,000 की नसबंदी हो चुकी है। इस वित्तीय वर्ष (2024-25) में अब तक 14,000 बंदरों की नसबंदी की जा चुकी है। सेंटर को अपग्रेड करने की योजना है, जिसमें 70 नए बाड़े बनाए जाएंगे, जिससे एक बार में 500 बंदरों को रखने की क्षमता होगी।
क्यों जरूरी है यह कदम?
बंदरों की बढ़ती संख्या न केवल किसानों के लिए सिरदर्द बनी हुई है, बल्कि शहरी और धार्मिक स्थलों पर भी यह आतंक का पर्याय बन चुके हैं। पहाड़ी इलाकों में फसलों को नुकसान और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए नसबंदी एक प्रभावी उपाय साबित हो रही है। हालांकि, पहाड़ों में बंदर उतने आक्रामक नहीं हैं, लेकिन उनकी फसलों को नष्ट करने की आदत ने किसानों को खेती छोड़ने पर मजबूर कर दिया है।
रसियाबढ़ नसबंदी सेंटर न केवल बंदरों की आबादी को नियंत्रित कर रहा है, बल्कि किसानों और स्थानीय लोगों के लिए राहत का सबब भी बन रहा है। इस पहल से खेती को फिर से आकर्षक बनाने और मानव-वन्यजीव टकराव को कम करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम उठाया जा रहा है। आने वाले सालों में यह प्रयास उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में खेती और जीवन को नई दिशा दे सकता है।