Wednesday, March 19, 2025
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पहाड़ों में जमीनों के गोल- खातों की समस्या बनी किसानों के लिए चुनौती

NTI (मोहन भुलानी ) : चकबंदी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसानों के बिखरे हुए खेतों को एक जगह पर लाकर उन्हें सुव्यवस्थित किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी किसान के पास पांच नाली जमीन है, लेकिन वह अलग-अलग जगहों पर बिखरी हुई है, तो चकबंदी के जरिए उसकी पूरी जमीन को एक स्थान पर लाया जा सकता है। इससे किसानों को खेती करने में आसानी होती है और उनकी उत्पादकता भी बढ़ती है।

पहाड़ी इलाकों में, जहां खेत सीढ़ीनुमा होते हैं, अगर किसी किसान का एक खेत पहाड़ के निचले हिस्से में है और दूसरा ऊपरी हिस्से में, तो चकबंदी के जरिए इन दोनों खेतों को एक स्थान पर लाने की कोशिश की जाती है। यह प्रक्रिया किसानों को जंगली जानवरों और अन्य प्राकृतिक चुनौतियों से निपटने में भी मदद करती है।

चकबंदी का इतिहास

चकबंदी की प्रक्रिया भारत में लगभग 125 साल पुरानी है। 1920 से यह प्रक्रिया देश के विभिन्न राज्यों में लागू हो चुकी है। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में चकबंदी सफलतापूर्वक लागू की गई है, जिससे वहां के किसानों को काफी फायदा हुआ है। हालांकि, उत्तराखंड में यह प्रक्रिया अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं हो पाई है।

गोल खाते क्या हैं?

गोल खाते की समस्या उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में विशेष रूप से देखने को मिलती है। गोल खाते का मतलब है कि एक ही खेत पर कई लोगों का हक होना। उदाहरण के तौर पर, यदि किसी खेत के मालिक की मृत्यु हो जाती है, तो उस खेत पर उसके बच्चों, भाइयों और अन्य रिश्तेदारों का हक बन जाता है। इससे खेत के एक हिस्से पर कई लोगों का दावा हो जाता है, जिससे खेत का सही तरीके से उपयोग नहीं हो पाता।

गोल खाते की वजह से किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे, यदि किसी खेत को बेचने की बात आती है, तो सभी हिस्सेदारों की सहमति लेना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, यदि सरकार को किसी खेत से सड़क निकालनी हो या बिजली का खंभा लगाना हो, तो सभी हिस्सेदारों की अनुमति लेना जरूरी हो जाता है, जो कि एक जटिल प्रक्रिया है।

चकबंदी और गोल खाते की समस्या

उत्तराखंड में चकबंदी और गोल खाते की समस्या काफी गंभीर है। यहां के किसानों के खेत अक्सर दूर-दूर बिखरे हुए होते हैं, जिससे उन्हें खेती करने में काफी दिक्कत होती है। इसके अलावा, गोल खाते की वजह से किसानों को अपने ही खेत पर पूर्ण अधिकार नहीं मिल पाता। इससे न केवल किसानों की उत्पादकता प्रभावित होती है, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति भी कमजोर हो जाती है।

उत्तराखंड में चकबंदी की प्रक्रिया 2020 में लागू की गई थी, लेकिन अभी तक इसका सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। किसानों का कहना है कि सरकार ने चकबंदी के लिए कानून तो बना दिया है, लेकिन इस पर अमल नहीं हो रहा है। इसकी वजह से किसानों के खेत अभी भी बिखरे हुए हैं और उन्हें खेती करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

समस्या का समाधान

इस समस्या के समाधान के लिए सरकार को चकबंदी की प्रक्रिया को तेजी से लागू करना होगा। साथ ही, गोल खाते की समस्या को दूर करने के लिए किसानों के खेतों को उनके व्यक्तिगत नाम पर करना होगा। इससे किसानों को अपने खेत पर पूर्ण अधिकार मिलेगा और वे अपनी जमीन का सही तरीके से उपयोग कर सकेंगे।

इसके अलावा, सरकार को किसानों को जागरूक करने की भी आवश्यकता है। कई किसानों को चकबंदी और गोल खाते के बारे में सही जानकारी नहीं है। इसलिए, सरकार को ग्रामीण स्तर पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए, ताकि किसानों को इन मुद्दों के बारे में सही जानकारी मिल सके।

उत्तराखंड में चकबंदी और गोल खाते की समस्या किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। यदि चकबंदी की प्रक्रिया को सही तरीके से लागू किया जाए और गोल खाते की समस्या को दूर किया जाए, तो उत्तराखंड के किसानों की स्थिति में सुधार हो सकता है और राज्य के कृषि क्षेत्र को नई दिशा मिल सकती है।

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