Friday, November 14, 2025
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आदि कैलाश क्षेत्र में अल्ट्रा मैराथन का स्वर्णिम और ऐतिहासिक आगाज़

पिथौरागढ़ (मोहन भुलानी): आज पिथौरागढ़ जिले के पवित्र आदि कैलाश क्षेत्र में एक अनोखी अल्ट्रा मैराथन का आयोजन किया गया, जो ऊंचाई, ठंड और चुनौतियों से भरी इस धरती पर साहस का प्रतीक बन गई। 14,000 फीट से अधिक की दुर्गम ऊंचाई पर माइनस 2 डिग्री सेल्सियस के शून्य से नीचे तापमान में आयोजित इस मैराथन ने देश-दुनिया के साहसी एथलीट्स को एकजुट किया। लगभग 800 से अधिक प्रतिभागियों ने इसमें हिस्सा लिया, जिनमें 20 वर्ष से लेकर 65 वर्ष तक के आयु वर्ग के धावक शामिल थे। यह आयोजन न केवल शारीरिक क्षमता का परीक्षण था, बल्कि मानसिक दृढ़ता और पर्यावरण के प्रति सम्मान का भी संदेश देता है।

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इस भव्य आयोजन का उद्घाटन केंद्रीय सड़क एवं परिवहन राज्य मंत्री अजय टम्टा ने किया। उन्होंने कहा, “विश्व प्रसिद्ध आदि कैलाश पर्वत की पवित्र धरा पर आयोजित यह देश की पहली उच्च हिमालयी अल्ट्रा मैराथन (10,300 से 15,000 फीट की ऊंचाई पर) न केवल रोमांच और साहस का प्रतीक है, बल्कि स्वस्थ जीवन, युवा सशक्तिकरण और सीमांत विकास का संदेश देने वाला प्रेरणादायी अभियान भी है।” उनके इस कथन ने मौके पर उपस्थित हजारों लोगों में उत्साह का संचार कर दिया। मंत्री महोदय ने आगे जोर देकर कहा कि उत्तराखंड की रजत जयंती इस तरह के कार्यक्रमों के माध्यम से राज्य को वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर मजबूती से स्थापित करेगी। आदि कैलाश, जो भगवान शिव का प्रतीक मानी जाती है, ऐसी चुनौतियों के बीच आयोजित होने से इस क्षेत्र की आध्यात्मिक ऊर्जा और प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा संगम हुआ।

इस मैराथन का मुख्य उद्देश्य ‘वाइब्रेंट विलेज बॉर्डर एडवेंचर टूरिज्म’ को बढ़ावा देना है। साथ ही, युवाओं में ‘से नो टू ड्रग्स’ का संदेश जन-जन तक पहुंचाना भी इसका लक्ष्य रहा। देशभर से आए इन 800 प्रतिभागियों ने न केवल अपनी सहनशक्ति का लोहा मनवाया, बल्कि सीमांत क्षेत्र की नई पहचान गढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई एथलीट्स ने बताया कि हिमालय की गोद में दौड़ना किसी तपस्या से कम नहीं। एक युवा धावक ने कहा, “यहां की ठंडी हवा और ऊंचे शिखर हमें जीवन के संघर्षों से जोड़ते हैं।” आयोजन ने स्थानीय समुदाय को भी सशक्त किया, क्योंकि इसमें व्यास घाटी के निवासियों ने स्वयंसेवक के रूप में योगदान दिया।

उत्तराखंड राज्य की स्थापना के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में रजत जयंती वर्ष का उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस विशेष अवसर पर राज्य भर में विविध सांस्कृतिक, खेलकूद और पर्यटन संबंधी कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं, जो न केवल राज्य की समृद्ध विरासत को उजागर कर रहे हैं, बल्कि सीमांत क्षेत्रों के विकास को गति प्रदान कर रहे हैं। इसी कड़ी में आज पिथौरागढ़ जिले के पवित्र आदि कैलाश क्षेत्र में एक अनोखी अल्ट्रा मैराथन का आयोजन किया गया, जो ऊंचाई, ठंड और चुनौतियों से भरी इस धरती पर साहस का प्रतीक बन गई। 14,000 फीट से अधिक की दुर्गम ऊंचाई पर माइनस 2 डिग्री सेल्सियस के शून्य से नीचे तापमान में आयोजित इस मैराथन ने देश-दुनिया के साहसी एथलीट्स को एकजुट किया। लगभग 800 से अधिक प्रतिभागियों ने इसमें हिस्सा लिया, जिनमें 20 वर्ष से लेकर 65 वर्ष तक के आयु वर्ग के धावक शामिल थे। यह आयोजन न केवल शारीरिक क्षमता का परीक्षण था, बल्कि मानसिक दृढ़ता और पर्यावरण के प्रति सम्मान का भी संदेश देता है।

इस भव्य आयोजन का उद्घाटन केंद्रीय सड़क एवं परिवहन राज्य मंत्री अजय टम्टा ने किया। उन्होंने कहा, “विश्व प्रसिद्ध आदि कैलाश पर्वत की पवित्र धरा पर आयोजित यह देश की पहली उच्च हिमालयी अल्ट्रा मैराथन (10,300 से 15,000 फीट की ऊंचाई पर) न केवल रोमांच और साहस का प्रतीक है, बल्कि स्वस्थ जीवन, युवा सशक्तिकरण और सीमांत विकास का संदेश देने वाला प्रेरणादायी अभियान भी है।” उनके इस कथन ने मौके पर उपस्थित हजारों लोगों में उत्साह का संचार कर दिया। मंत्री महोदय ने आगे जोर देकर कहा कि उत्तराखंड की रजत जयंती इस तरह के कार्यक्रमों के माध्यम से राज्य को वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर मजबूती से स्थापित करेगी। आदि कैलाश, जो भगवान शिव का प्रतीक मानी जाती है, ऐसी चुनौतियों के बीच आयोजित होने से इस क्षेत्र की आध्यात्मिक ऊर्जा और प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा संगम हुआ।

इस मैराथन का मुख्य उद्देश्य ‘वाइब्रेंट विलेज बॉर्डर एडवेंचर टूरिज्म’ को बढ़ावा देना है। साथ ही, युवाओं में ‘से नो टू ड्रग्स’ का संदेश जन-जन तक पहुंचाना भी इसका लक्ष्य रहा। देशभर से आए इन 800 प्रतिभागियों ने न केवल अपनी सहनशक्ति का लोहा मनवाया, बल्कि सीमांत क्षेत्र की नई पहचान गढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई एथलीट्स ने बताया कि हिमालय की गोद में दौड़ना किसी तपस्या से कम नहीं। एक युवा धावक ने कहा, “यहां की ठंडी हवा और ऊंचे शिखर हमें जीवन के संघर्षों से जोड़ते हैं।” आयोजन ने स्थानीय समुदाय को भी सशक्त किया, क्योंकि इसमें व्यास घाटी के निवासियों ने स्वयंसेवक के रूप में योगदान दिया।

मैराथन का रूट गुंजी से शुरू होकर कालापानी होते हुए पुनः गुंजी में समाप्त हुआ, जो लगभग 60 किलोमीटर की दुर्गम दूरी तय करता है। इस दौरान एथलीट्स को बर्फीली चट्टानों, ऊंचे दर्रों और तेज हवाओं का सामना करना पड़ा। फिर भी, उनका जोश देखने लायक था। बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग धावक सबके चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए लक्ष्य की ओर बढ़े। पिथौरागढ़ के सीमांत इलाकों में पर्यटन गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ, यहां के होमस्टे और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में यह आयोजन मील का पत्थर साबित हो रहा है।

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नोडल अधिकारी उत्कर्ष ने बताया, “मैराथन में आने वाले लोगों के लिए विशेष इंतजाम किए गए थे। लगभग 22 राज्यों से आए एथलीट्स ने इसमें भाग लिया।” उन्होंने यह भी कहा कि प्रतिभागियों को आदि कैलाश की पवित्र मिट्टी, स्थानीय पत्थर, पार्वती कुंड का जल और एक सुंदर पेंटिंग के अलावा हस्तशिल्प उत्पाद भेंट किए गए। इसके अतिरिक्त, सभी को पारंपरिक पहाड़ी व्यंजन जैसे आलू के गुटके, कढ़ाई चावल और गाहूं की रोटियां परोसी गईं, जो स्थानीय स्वाद का परिचय कराती हैं।

पर्यटन सचिव धीराज गर्ब्याल ने आयोजन की सराहना करते हुए कहा, “इसके सफल संचालन से आदि कैलाश क्षेत्र एवं व्यास घाटी को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर स्थापित करने में सहायता मिलेगी।” उन्होंने सेना, पर्यटन विभाग और स्थानीय प्रशासन की भूमिका की प्रशंसा की। जोर देकर कहा कि आदि कैलाश अल्ट्रा मैराथन क्षेत्रीय विकास के लिए एक माइलस्टोन साबित होगी, जो रोजगार सृजन और सांस्कृतिक संरक्षण को बढ़ावा देगी।

विजेताओं के लिए आकर्षक पुरस्कार रखे गए हैं। 60 किलोमीटर की ओपन दौड़ में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले महिला और पुरुष विजेताओं को दो-दो लाख रुपये का नगद पुरस्कार मिलेगा। पहले पांच स्थानों पर रहने वालों को क्रमशः 2 लाख, 1.25 लाख, 75 हजार, 65 हजार और 45 हजार रुपये दिए जाएंगे। इसी प्रकार, विभिन्न आयु वर्गों और श्रेणियों में लाखों रुपये के पुरस्कार वितरित होंगे, जो एथलीट्स को प्रेरित करेंगे।

भविष्य में भी ऐसे आयोजन जारी रहेंगे। केदारनाथ से ऊपर, यानी चीन-भारत सीमा पर नीति माणा बॉर्डर में भी एक अल्ट्रा मैराथन का आयोजन प्रस्तावित है। यह अगले वर्ष मई-जून में होगा, जो कुमाऊं के बाद गढ़वाल की दूसरी सबसे ऊंची चोटी पर आयोजित होगी। इससे हिमालयी पर्यटन को नई ऊंचाइयां मिलेंगी।

यह मैराथन न केवल खेल का उत्सव है, बल्कि उत्तराखंड की रजत जयंती का प्रतीक भी। यह साहस, एकता और विकास की कहानी कहती है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगी।

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