NTI (रुद्रपुर): बेर, जिसे गरीबों का फल भी कहा जाता है, भले ही खेती के मामले में बहुत लोकप्रिय न हो, लेकिन यह किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प साबित हो सकता है। बेर की कुछ उन्नत किस्में न केवल अच्छा उत्पादन देती हैं, बल्कि जल्दी फल भी देना शुरू कर देती हैं। अगर आप भी बेर की खेती (Plum Farming) शुरू करने की सोच रहे हैं, तो उत्तराखंड के रुद्रपुर के सैजना गांव के प्रगतिशील किसान नीरज नागपाल से प्रेरणा और जानकारी ले सकते हैं।
नीरज नागपाल ने धान और गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों को छोड़कर बागवानी फसलों पर ध्यान केंद्रित किया है। उनके 3 एकड़ के खेत में बेर की कई उन्नत किस्में देखी जा सकती हैं, जिनमें बाल सुंदरी, मिस इंडिया और ग्रीन एप्पल शामिल हैं। इनमें सबसे ज्यादा पेड़ बाल सुंदरी के हैं। नीरज ने 10×10 के अंतराल पर 3 एकड़ में 1300 बेर के पेड़ लगाए हैं। उनका कहना है कि बेर की खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि पहले साल से ही अच्छा उत्पादन शुरू हो जाता है, जिससे लागत आसानी से निकल आती है। बेर के पेड़ आमतौर पर एक साल में तैयार होकर फल देना शुरू कर देते हैं।
नीरज के अनुसार, बेर के पेड़ों को ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती। समय पर खाद और पानी देना, साथ ही कीटनाशकों का छिड़काव (स्प्रे) करना जरूरी होता है। वे कहते हैं, “स्प्रे करना बहुत महत्वपूर्ण है, तभी अच्छी फसल मिलती है।” उनके अनुभव में सबसे बड़ी चुनौती अच्छी गुणवत्ता वाले पौधे प्राप्त करना है। नीरज ने अपने बेर के पौधे कोलकाता के कृषि मेले से खरीदे थे। हालांकि उन्होंने अप्रैल में पौधे लगाए, लेकिन उनका कहना है कि बेर की खेती के लिए फरवरी सबसे उपयुक्त समय है। वे अगले साल फरवरी में 2000 नए पौधे लगाने की योजना बना रहे हैं।
नीरज अब तक 15 क्विंटल बेर बेच चुके हैं और अभी और फसल की उम्मीद है। उनका अनुमान है कि एक साल में लगभग 25 क्विंटल उत्पादन हो जाता है। बाजार में उन्होंने बेर 80 रुपये प्रति किलो तक बेचे हैं, हालांकि कभी-कभी कीमत 60 रुपये प्रति किलो तक भी हो जाती है। नीरज का मानना है कि धान और गेहूं की तुलना में बेर की खेती से बेहतर मुनाफा कमाया जा सकता है। वे कहते हैं, “बेर की खेती अन्य फसलों की तुलना में आसान है और मुनाफा भी अच्छा देती है।”
कई किसान बेर की खेती से इसलिए हिचकते हैं, क्योंकि इसके पेड़ों में कांटे होते हैं। लेकिन नीरज ने इसे क्यों चुना? वे बताते हैं कि अन्य बागवानी फसलों की तुलना में बेर की खेती आसान है। आम की फसल में जहां एक साल अच्छी पैदावार के बाद अगले साल उत्पादन नहीं होता, वहीं बेर हर साल स्थिर फसल देता है। इसके अलावा, बेर का बाजार भी अच्छा है और यह आसानी से बिक जाता है। नीरज द्वारा लगाई गई किस्मों में कांटे भी बहुत कम होते हैं, जो इसे और आकर्षक बनाता है।
बेर की खेती आमतौर पर शुष्क इलाकों में की जाती है। यह प्रोटीन, विटामिन सी और खनिजों से भरपूर होता है। भारत में यह मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है। बेर रेतीली, चिकनी, क्षारीय, खारी और दलदली मिट्टी में भी उग सकता है। रेतीली मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी मानी जाती है, क्योंकि इसमें पानी सोखने की क्षमता अधिक होती है। खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध भी जरूरी है।
बेर के पौधे बीज या कलम से तैयार किए जा सकते हैं। बीज से पौध तैयार करने में समय लगता है, इसलिए ज्यादातर किसान कलम और टहनियों का इस्तेमाल करते हैं। कलम को पॉली बैग में लगाया जाता है और पौध तैयार होने पर खेत में रोपाई की जाती है।
नीरज किसानों को पारंपरिक फसलों को छोड़कर बागवानी फसलों की खेती की सलाह देते हैं। उनका मानना है कि बेर की खेती न केवल आसान है, बल्कि यह कम मेहनत में अच्छा मुनाफा देती है। यह गरीबों का फल भले हो, लेकिन सही तकनीक और मेहनत से यह किसानों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन सकता है।