NTI: उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र, जो कभी अपनी हरियाली और समृद्ध संस्कृति के लिए जाने जाते थे, आज स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के अभाव में खाली होते जा रहे हैं। खेत बंजर पड़े हैं और गांव वीरान हो चुके हैं। लेकिन इसी बीच, पौडी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर ब्लॉक के फलदाकोट गांव में एक क्रांतिकारी प्रयोग ने नई उम्मीद की किरण जगाई है। यहां के जुनूनी युवा नवीन पटवाल ने देश में पहली बार गुच्छी मशरूम (मोरचेला या मोरल्स) का उत्पादन शुरू किया है। यह उपलब्धि स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
गुच्छी मशरूम एक दुर्लभ और पौष्टिक फंगस है, जो आमतौर पर हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगता है। इसके औषधीय गुणों और अनूठे स्वाद के कारण बाजार में इसकी कीमत 40,000 से 50,000 रुपये प्रति किलो तक पहुंचती है। इसे “मोदी मशरूम” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साक्षात्कार में इसके स्वाद और गुणों की तारीफ की थी। यह मशरूम मार्च-अप्रैल में बिजली की चमक, बादलों की गड़गड़ाहट और बारिश के बीच जंगलों में उगता है। लेकिन अब, पौड़ी के नवीन पटवाल ने इसे पॉलीहाउस में उगाकर इतिहास रच दिया है।
नवीन पटवाल पिछले एक दशक से मशरूम की खेती में नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। जब उन्हें पता चला कि गुच्छी मशरूम की बाजार में भारी मांग है, लेकिन इसे कहीं भी व्यावसायिक रूप से उगाया नहीं जाता, तो उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया। पहाड़ों की भौगोलिक स्थिति और ठंडा वातावरण इस फसल के लिए अनुकूल था, लेकिन प्राकृतिक जंगल की बजाय पॉलीहाउस में इसे उगाना एक बड़ी चुनौती थी।
तीन साल पहले शुरू हुए इस प्रयोग में पहले दो साल असफलताएं हाथ लगीं। पहली बार स्पॉनिंग (बीज तैयार करने) के चरण में प्रोजेक्ट विफल हुआ, तो दूसरी बार पिनहेड स्टेज में फसल खराब हो गई। लेकिन नवीन ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा, अधिक जानकारी जुटाई और दिसंबर 2024 में तीसरा प्रयास शुरू किया। मात्र तीन महीनों में उनकी मेहनत रंग लाई। आज फलदाकोट गांव का पॉलीहाउस देश की सबसे महंगी मशरूम से लहलहा रहा है। नवीन बताते हैं, “जंगलों में जितनी गुच्छी प्राकृतिक रूप से उगती है, उससे कहीं अधिक हमने एक छोटे से पॉलीहाउस में उगा लिया है।”
गुच्छी मशरूम की खेती के लिए 5 से 15 डिग्री सेल्सियस का तापमान और शुष्क लेकिन आर्द्र वातावरण जरूरी है। अत्यधिक बर्फबारी वाले क्षेत्र इसके लिए उपयुक्त नहीं हैं। नवीन के अनुसार, “इस फसल के लिए जमीन का 100% ऑर्गेनिक होना जरूरी है। अगर जमीन पर पहले कीटनाशक या यूरिया का इस्तेमाल हुआ हो, तो यह फसल नहीं उगेगी।” पौड़ी की प्राकृतिक रूप से ऑर्गेनिक जमीन ने इस प्रयोग को सफल बनाया। इस फसल को 90 दिनों में तैयार किया गया, जिसमें केवल तीन बार पानी की जरूरत पड़ी।
गुच्छी मशरूम विटामिन्स और मिनरल्स का खजाना है। यह एक प्राकृतिक टॉनिक की तरह काम करता है और शरीर को ताकत देता है। इसमें आयरन की प्रचुर मात्रा होने के कारण यह एनीमिया के मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद है और लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद करता है। इसके अलावा, यह गठिया, थायराइड, हड्डियों की सेहत और मानसिक तनाव को कम करने में सहायक है। हृदय रोगों और शरीर की चोटों को जल्दी ठीक करने में भी यह लाभकारी है। इसकी औषधीय खूबियों के कारण यह दुनिया भर के मिशेलिन स्टार रेस्तरां और हाई-एंड मेन्यू में शामिल है।
नवीन पटवाल का मानना है कि गुच्छी मशरूम की खेती उत्तराखंड के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती है। वे कहते हैं, “यह फसल पूरे उत्तराखंड में अलग-अलग क्षेत्रों में रोटेशन के आधार पर उगाई जा सकती है। इसके लिए न ज्यादा पानी चाहिए, न ही भारी निवेश।” इसकी ऊंची कीमत और सूखे रूप में बिकने की खासियत इसे पहाड़ी क्षेत्रों के लिए आदर्श बनाती है। इससे न केवल स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा, बल्कि पलायन को रोकने में भी मदद मिलेगी। नवीन का अगला लक्ष्य हर्षिल जैसे ठंडे क्षेत्रों में इसकी खेती का ट्रायल करना है।
नवीन गर्व से कहते हैं, “यह पूरे देश में पहली बार है कि गुच्छी मशरूम की व्यावसायिक फसल पॉलीहाउस में सफल हुई है, और यह गर्व की बात है कि यह उत्तराखंड में हुआ।” इससे पहले कुछ स्थानों पर ट्रायल हुए, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। उनकी यह उपलब्धि न केवल पौड़ी, बल्कि पूरे राज्य के लिए एक मिसाल है।
पौड़ी के खाली होते गांवों और बंजर खेतों के बीच नवीन पटवाल ने उम्मीद की एक नई मशाल जलाई है। उनकी यह सफलता बताती है कि मेहनत और लगन से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। यह प्रयोग न केवल आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर रहा है, बल्कि युवाओं को अपने पहाड़ों की ओर लौटने के लिए प्रेरित भी कर रहा है। उत्तराखंड के लिए यह एक सुनहरा अवसर है, जिसे अपनाकर हम अपने पहाड़ों को फिर से आबाद कर सकते हैं। नवीन पटवाल जैसे युवाओं की यह पहल निश्चित रूप से एक नई क्रांति की शुरुआत है।