NTI: करीब 30 साल पहले, एक गरीब किसान के बेटे ने सपना देखा था कुछ बड़ा करने का। साइंस और टेक्नोलॉजी के प्रति उसका जुनून ऐसा था कि बचपन में अनाथ होने के बावजूद, उसने अपनी मेहनत के दम पर मास्टर्स की डिग्री हासिल की। इसी जुनून और मेहनत ने एक ऐसा बिजनेस एंपायर खड़ा किया, जिसकी कहानी आज दुनिया के लिए प्रेरणा बन चुकी है। यह शख्स कोई और नहीं, बल्कि वांग चुआन फू (Wang Chuanfu) हैं, जिनकी कंपनी बी वाई डी (BYD) आज इलॉन मस्क की टेस्ला को भी टक्कर देती है। इसकी कारें दिग्गज कंपनियों के साथ मिलकर बनती हैं, और इसकी क्षमता को देखकर वॉरेन बफेट ने भी इसके 10% शेयर खरीद लिए। आइए जानते हैं बी वाई डी की शुरुआत से लेकर ग्लोबल लीडर बनने तक की पूरी कहानी, इसके राज और स्ट्रेटजी को विस्तार से।
गरीबी से भरा बचपन और सपनों की उड़ान
BYD की कहानी शुरू होती है Wang Chuanfu से, जिनका जन्म चीन के एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। परिवार की हालत ऐसी थी कि दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से मिलती थी। लेकिन असली संघर्ष तब शुरू हुआ, जब बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया। बड़े भाई-बहनों ने जैसे-तैसे घर का खर्च चलाया, लेकिन हालात इतने बुरे थे कि कोई भी टूट सकता था। फिर भी, वांग की आंखों में सपने थे और दिल में साइंस व टेक्नोलॉजी का जुनून।
उन्होंने अपनी पढ़ाई कभी नहीं छोड़ी। मेहनत और कॉलेज की स्कॉलरशिप की मदद से 1987 में वांग ने सेंट्रल साउथ यूनिवर्सिटी से मेटालर्जिकल फिजिकल केमिस्ट्री में ग्रेजुएशन पूरा किया और बाद में मास्टर्स की डिग्री भी हासिल की। 90 के दशक में उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें एक सरकारी रिसर्चर की नौकरी मिली। लेकिन जिसकी किस्मत में लाखों लोगों को रोजगार देना लिखा हो, वह एक नौकरी में कैसे बंध सकता था?
BYD की छोटी शुरुआत
वांग ने मार्केट को समझना शुरू किया और कुछ इनोवेटिव करने का फैसला लिया। साल 1995 में, सिर्फ 29 साल की उम्र में, उन्होंने अपने कजिन लू सियांग यांग के साथ मिलकर शेनझेन में एक छोटी सी कंपनी शुरू की। यहीं से बी वाई डी (Build Your Dreams) की नींव पड़ी। शुरुआत में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में आने का कोई इरादा नहीं था। वांग का फोकस बैटरी टेक्नोलॉजी पर था, क्योंकि उन्हें फिजिकल केमिस्ट्री की गहरी समझ थी।
उस दौर में चीन में इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम सेक्टर तेजी से बढ़ रहा था, जिससे बैटरी की डिमांड में उछाल आया। वांग ने इस मौके को भुनाया और रिचार्जेबल बैटरी बनाना शुरू किया। उनकी स्ट्रेटजी साफ थी—मार्केट में हिट प्रोडक्ट्स की सस्ती और किफायती कॉपी तैयार करना। यह तरीका काम कर गया। धीरे-धीरे नोकिया जैसे बड़े ब्रांड्स के ऑर्डर आने लगे। पैसों की कमी के बावजूद, वांग ने महंगी मशीनों की जगह सस्ते लेबर का इस्तेमाल किया, जिससे लागत कम हुई और कंपनी की पहली बड़ी सफलता मिली।
बैटरी से इलेक्ट्रिक CAR तक का सफर
साल 2000 के आसपास BYD ने लिथियम-आयन और लिथियम-पॉलीमर बैटरीज बनाना शुरू किया। उनकी बैटरीज नोकिया, पैनासोनिक, और बाद में एप्पल जैसे ब्रांड्स में इस्तेमाल होने लगीं। लेकिन वांग का विजन इससे बड़ा था। बढ़ती एनर्जी डिमांड और पेट्रोल-डीजल की कीमतों को देखते हुए, उन्होंने बैटरी से आगे बढ़कर इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की दुनिया में कदम रखने का फैसला किया।
2005 में बी वाई डी ने अपनी पहली प्लग-इन हाइब्रिड कार F3DM लॉन्च की। इसकी जबरदस्त ग्रोथ ने वॉरेन बफेट का ध्यान खींचा। 2008 में बफेट की कंपनी बर्कशायर हैथवे ने 230 मिलियन डॉलर में बी वाई डी के 10% शेयर खरीदे। इससे कंपनी की वैल्यूएशन 5 गुना बढ़कर 5 बिलियन डॉलर को पार कर गई।
ग्लोबल लीडर बनने की राह
2009 से 2013 तक बी वाई डी ने इलेक्ट्रिक वाहनों पर पूरा फोकस किया। सिर्फ कारें ही नहीं, इलेक्ट्रिक बसें और कमर्शियल व्हीकल्स भी लॉन्च किए। उनकी K9 इलेक्ट्रिक बस दुनिया भर के 200 से ज्यादा शहरों में चलने लगी। चीनी सरकार की सब्सिडी, अनुकूल नीतियां और इंसेंटिव्स ने उनकी रफ्तार को और तेज किया। 2013 से 2022 के बीच बी वाई डी ने Qin, Tang, Han, Dolphin, Seal जैसी लोकप्रिय EV लॉन्च कीं। उनकी ब्लेड बैटरी, जो 600 किमी से ज्यादा रेंज देती है, ने टेस्ला को भी कड़ी टक्कर दी।
आज BYD की नेटवर्थ 137 बिलियन डॉलर है। यह कंपनी 9 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार देती है और कारों के अलावा बैटरी, सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स, इलेक्ट्रिक फोर्कलिफ्ट, और मोनोरेल तक बनाती है। सेल्स वॉल्यूम में यह टेस्ला से आगे निकल चुकी है।
भारत में क्यों नहीं दिखती BYD?
BYD ने 2007 में चेन्नई में बैटरी प्लांट के साथ भारत में कदम रखा। लेकिन जब इलेक्ट्रिक कारें इंपोर्ट करने की बारी आई, तो सरकार ने 100% इंपोर्ट ड्यूटी लगा दी। इससे कारों की कीमत दोगुनी हो गई। 2023 में बी वाई डी ने भारत में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने का प्रस्ताव दिया, लेकिन सरकार ने इसे खारिज कर दिया। वजह साफ है—टाटा और महिंद्रा जैसी देसी कंपनियों को चुनौती न मिले।
BYD के Wang Chuanfu ने गरीबी से निकलकर एक ऐसा साम्राज्य बनाया, जो आज टेस्ला को टक्कर देता है। उनकी बैटरी टेक्नोलॉजी और वर्टिकल इंटीग्रेशन ने लागत घटाई और क्वालिटी बढ़ाई। भारत जैसे बाजार में इसकी एंट्री हमारी इकॉनमी के लिए फायदेमंद हो सकती थी, लेकिन अभी यह सपना अधूरा है। फिर भी, बी वाई डी का सफर हर उस शख्स के लिए प्रेरणा है, जो मुश्किलों के बावजूद कुछ बड़ा करना चाहता है।