पौड़ी: उत्तराखंड की पहाड़ी रसोई का अभिन्न हिस्सा, गहत दाल (कुल्थी या हॉर्स ग्राम), न केवल अपने स्वाद और पोषण के लिए जानी जाती है, बल्कि अब वैज्ञानिक शोध ने इसे गुर्दे की पथरी के लिए एक कारगर औषधि के रूप में स्थापित किया है। पौड़ी गढ़वाल स्थित जीबी पंत अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (जीबीपीआईईटी) की बायोटेक्नोलॉजी विशेषज्ञ और डीन (आरएंडडी) डॉ. ममता बौठियाल के नेतृत्व में हुए इस ऐतिहासिक शोध ने गहत दाल को एक न्यूट्रास्यूटिकल फसल (आहार औषधि) के रूप में नई पहचान दी है। यह शोध प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं रिसर्च जर्नल ऑफ फार्माकॉग्नोसी एंड फाइटोकेमिस्ट्री (आरजेपीपी) और इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एडवांस्ड रिसर्च (आईजेएआर) में प्रकाशित हुआ है।
गहत दाल का औषधीय महत्व
डॉ. ममता बौठियाल और उनकी टीम ने गहत दाल के बीजों और पत्तियों के अर्क पर गहन अध्ययन किया। इस शोध में पाया गया कि गहत दाल में मौजूद जैवसक्रिय यौगिक निम्नलिखित तरीकों से गुर्दे की पथरी के उपचार में प्रभावी हैं:
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पथरी का विघटन: गहत दाल का अर्क गुर्दे में मौजूद कैल्शियम ऑक्सलेट पथरी को घोलने में सक्षम है।
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पथरी निर्माण की रोकथाम: यह न केवल मौजूदा पथरी को घोलता है, बल्कि नए पथरियों के बनने की प्रक्रिया को भी रोकता है।
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मूत्र संबंधी समस्याओं में राहत: गहत दाल का नियमित सेवन मूत्र मार्ग की समस्याओं को कम करने में सहायक है।
डॉ. बौठियाल ने बताया, “गहत दाल में प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, फाइबर और कई जैवसक्रिय यौगिक मौजूद हैं, जो इसे पोषण और औषधीय गुणों से भरपूर बनाते हैं। प्राचीन काल से उत्तराखंड के लोग इसका उपयोग भोजन के रूप में करते आए हैं, लेकिन अब इसका वैज्ञानिक महत्व सिद्ध होने से यह एक औषधीय फसल के रूप में उभरी है।”
उत्तराखंड में गहत दाल का उपयोग पारंपरिक रूप से दाल, पराठा, फाणू और पकौड़ी जैसे स्वादिष्ट व्यंजनों में होता रहा है। यह दाल न केवल स्थानीय संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि अब इसका वैज्ञानिक महत्व इसे वैश्विक स्तर पर पहचान दिला सकता है। इस शोध ने गहत दाल को एक न्यूट्रास्यूटिकल के रूप में स्थापित किया है, जो भोजन और दवा दोनों की भूमिका निभा सकती है।
यह खोज न केवल स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि उत्तराखंड के किसानों के लिए भी आर्थिक अवसर खोलती है। डॉ. बौठियाल का मानना है कि गहत दाल की औषधीय मांग बढ़ने से किसानों को नई फसल के रूप में इसे उगाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ-साथ पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि को बढ़ावा देगा। सरकार की हाउस ऑफ हिमालयास पहल के तहत गहत दाल को ब्रांडिंग और मार्केटिंग के जरिए वैश्विक बाजार में ले जाया जा सकता है।
गहत दाल का यह शोध उत्तराखंड की समृद्ध जैव विविधता और पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ने का एक शानदार उदाहरण है। यह न केवल स्थानीय समुदायों के लिए गर्व का विषय है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे प्राचीन आहार आधुनिक स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान बन सकते हैं।
डॉ. ममता बौठियाल और उनकी टीम अब गहत दाल के अन्य औषधीय गुणों पर शोध कर रही हैं, ताकि इसके और भी स्वास्थ्य लाभों को उजागर किया जा सके। साथ ही, यह शोध फार्मास्यूटिकल कंपनियों के लिए प्रेरणा बन सकता है, जो गहत दाल आधारित प्राकृतिक दवाओं का विकास कर सकती हैं।
गहत दाल अब केवल उत्तराखंड की रसोई तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसी फसल है, जो स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और संस्कृति को जोड़ने का सेतु बन रही है। यह खोज न केवल स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाएगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ेगी।

