NTI (मोहन भुलानी ) : पहाड़ों की गोद में बसा उत्तराखंड का पौड़ी गढ़वाल जिला पिछले कुछ दशकों में बदलाव के दौर से गुजर रहा है। कभी हरे-भरे खेतों से आबाद यह क्षेत्र धीरे-धीरे वीरान होता गया। रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं की तलाश में लोग अपने पैतृक गांवों को छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर गए। लेकिन इन सबके बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इस वीरानी को हरियाली में बदलने का सपना संजोए हुए हैं। ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है अर्जुन सिंह पंवार की, जिन्होंने अपने खेतों को नई जिंदगी दी और पूरे पौड़ी जिले में एक मिसाल कायम की।
अर्जुन सिंह पंवार एक रिटायर्ड फौजी हैं, जिन्होंने भारतीय सेना में 16 साल से अधिक समय तक सेवा की। 1960 के दशक में स्कूल छोड़कर सेना में भर्ती होने वाले अर्जुन ने श्रीलंका, असम, अरुणाचल और जम्मू-कश्मीर जैसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में देश की सेवा की। वॉलंटरी रिटायरमेंट लेने के बाद वे दिल्ली में कुछ समय तक प्राइवेट नौकरी में रहे, लेकिन उनका मन हमेशा अपने गांव और अपनी जमीन की ओर खिंचता रहा। दो बार ग्राम प्रधान के रूप में सेवा देने के बाद, उन्होंने अपनी बंजर पड़ी पैतृक जमीन को आबाद करने का फैसला किया।
2020 में अर्जुन ने अपने सपने को हकीकत में बदलने की शुरुआत की। उन्होंने अपने गांव मरकड़ा (खिरसू ब्लॉक, पौड़ी गढ़वाल) में सेब के बगीचे की नींव रखी। शुरुआत में केवल 500 पौधे लगाए गए, ताकि अनुभव हासिल हो सके। उनके साथ गांव के ही एक साथी ने इस काम में हाथ बंटाया। मेहनत रंग लाई और 2021 में उन्होंने 500 और पौधे लगाए। आज उनके पास दो बगीचे हैं, जिसमें कुल मिलाकर 1750 पौधे हैं, और उनकी नजर 5000 पौधों के लक्ष्य पर है।
पहाड़ों में खेती करना आसान नहीं है। अर्जुन और उनके परिवार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जंगली जानवरों का खतरा, पानी की कमी, और जलवायु परिवर्तन की मार ने उनके रास्ते में रोड़े अटकाए। पानी की व्यवस्था के लिए उन्होंने दो मोटरों का इस्तेमाल किया—एक गधेरे से पानी इकट्ठा करने के लिए, दूसरा पीने और बगीचे के लिए। बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के बिना बगीचे को चलाना एक जंग लड़ने जैसा था। इसके बावजूद, अर्जुन ने हार नहीं मानी।
उनकी पत्नी भी इस संघर्ष में बराबर की भागीदार रहीं। अर्जुन जब फौज में थे, तो वह अकेले घर संभालती थीं। परिवार में कई उतार-चढ़ाव आए—जेठ-जेठानी की अचानक मृत्यु, उनकी बेटियों की शादी, और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई। लेकिन उन्होंने हर मुश्किल को पार किया और अर्जुन के सपने को साकार करने में पूरा साथ दिया। उनकी बहू भी अब धीरे-धीरे इस काम में हाथ बंटाने लगी है।
अर्जुन के बगीचे में सेब की कई प्रजातियां हैं—रेड सनिको, MM111, और M9। ये हाई-डेंसिटी बागवानी की तकनीक से तैयार किए गए हैं, जिसमें ड्रिप इरिगेशन, ट्रेलेज सिस्टम, और मल्चिंग का इस्तेमाल होता है। उनकी जमीन 1480 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जो सेब और कीवी की खेती के लिए उपयुक्त है। पौड़ी जिले में 1400 से 2300 मीटर की ऊंचाई वाले गांव इस तरह की खेती के लिए मुफीद हैं। अर्जुन ने सेब के साथ-साथ कीवी के पेड़ भी लगाए हैं, जिससे उनकी आय के स्रोत बढ़ रहे हैं।
भारत सरकार की एप्पल मिशन योजना के तहत 2020 में उन्हें 80:20 के अनुपात में अनुदान मिला—80% सरकार और 20% उनकी अपनी लागत। हालांकि, बाद में यह अनुपात 60:40 हो गया, जिससे किसानों को थोड़ी मुश्किल हुई। फिर भी, अर्जुन ने इस योजना का लाभ उठाया और अपने बगीचे को खड़ा किया। पौड़ी के पूर्व डीएम धीरेश गरियाल जैसे अधिकारियों ने भी इस दिशा में किसानों को प्रोत्साहित किया।
पहाड़ों में परंपरागत खेती—जैसे झंगोरा, मंडवा, और दालें—अब उतनी लाभकारी नहीं रही। जंगली जानवरों का आतंक और मेहनत की तुलना में कम उत्पादन इसकी वजह हैं। अर्जुन ने इस चुनौती को अवसर में बदला और कैश क्रॉप्स की ओर रुख किया। सेब और कीवी जैसे फल उनकी मेहनत को आर्थिक रूप से फलदायी बना रहे हैं। हालांकि, वे मानते हैं कि पारंपरिक खेती को पूरी तरह छोड़ना भी सही नहीं है। उत्तराखंड में जैविक खेती का चलन अभी बरकरार है, जो इसे हिमाचल जैसे मॉडल से अलग करता है, जहां बड़े पैमाने पर रासायनिक खेती ने जैविकता को प्रभावित किया है।
अर्जुन सिंह पंवार पूरे पौड़ी जिले के लिए प्रेरणा बन गए हैं । उनके दो बगीचे, जो करीब 40 नाली जमीन पर फैले हैं, आज फल दे रहे हैं। खिरसू ब्लॉक, जो श्रीनगर से 20 किलोमीटर और पौड़ी से 30 किलोमीटर की दूरी पर है, अब धीरे-धीरे हरियाली की ओर बढ़ रहा है। अर्जुन का मानना है कि अगर इच्छाशक्ति हो, तो बंजर खेतों को भी आबाद किया जा सकता है। उनकी पेंशन ने उन्हें आर्थिक सुरक्षा दी, लेकिन उनकी मेहनत और परिवार का सहयोग इस सफलता की असली वजह है।