NTI: भारत की सनातन परंपरा में संतों का स्थान हमेशा से विशेष रहा है। ये संत न केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शक होते हैं, बल्कि समाज को एकता, विश्वास और समर्पण का संदेश भी देते हैं। ऐसी ही एक अद्भुत शख्सियत हैं देश के सबसे बड़े अखाड़े—निरंजनी अखाड़े—के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी जी महाराज। उनकी कठिन तपस्या, महादेव के प्रति अटूट भक्ति और सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार ने उन्हें न केवल भारत, बल्कि विश्व स्तर पर एक प्रेरणास्रोत बना दिया है। आज विश्व के कोने-कोने से लोग उनके दर्शन करने, उनका आशीर्वाद लेने और उनकी साधना के रहस्य को जानने के लिए लालायित रहते हैं। जानते हैं कैलाशानंद गिरी जी के जीवन, तप और उनकी अनूठी साधना की कहानी।
प्रारंभिक जीवन
कैलाशानंद गिरी जी का जन्म 1 जनवरी 1976 को झारखंड के देवघर जिले के छोटे से कस्बे जसीडी में हुआ था। उस समय उनका नाम कैलाश पांडे था। मात्र तीन वर्ष की आयु में उन्होंने गृह त्याग कर सनातन धर्म के विद्यार्थी बनने का संकल्प लिया। संस्कृत का एक श्लोक है—काक चेष्टा वको ध्यानं स्वप्नद्रा तथैव च, अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम्—जो कहता है कि गृह त्याग सनातन के सच्चे विद्यार्थी का लक्षण है। कैलाशानंद गिरी जी ने इस लक्षण को छोटी सी उम्र में ही आत्मसात कर लिया।
उन्होंने अयोध्या, काशी, जम्मू और महाराष्ट्र जैसे तीर्थस्थलों में कई सिद्ध साधकों के सान्निध्य में समय बिताया। काशी के संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से वेद में आचार्य की उपाधि प्राप्त करने के बाद, 2002 में वे श्री शंभू पंच अग्नि अखाड़े के सचिव बने। यहीं से उनकी सनातन यात्रा ने नया मोड़ लिया। उनके गुरु बापू गोपालानंद ब्रह्मचारी ने उन्हें दीक्षा दी, और उनका नाम कैलाशानंद ब्रह्मचारी पड़ा।
अग्नि अखाड़े से निरंजनी अखाड़े तक का सफर
अग्नि अखाड़ा ब्रह्मचारियों का अखाड़ा है, जहां कठोर ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है। कैलाशानंद ब्रह्मचारी ने इस अखाड़े में कई वर्षों तक सेवा की। उनकी कार्यकुशलता और समर्पण को देखते हुए 2006 में उन्हें हरिद्वार के सिद्ध पीठ दक्षिण काली मंदिर का पीठाधीश्वर बनाया गया। 2013 के प्रयागराज कुंभ में, मात्र 38 वर्ष की आयु में, उन्हें अग्नि अखाड़े का महामंडलेश्वर घोषित किया गया—यह सनातन परंपरा में एक अत्यंत प्रतिष्ठित पद है।
2018 में उनके गुरु बापू गोपालानंद ब्रह्मचारी के ब्रह्मलीन होने के बाद कैलाशानंद ब्रह्मचारी पर बड़ी जिम्मेदारियां आ गईं। बापू ने मां अन्नपूर्णा को सिद्ध किया था, जिसके कारण उनके आश्रमों में कभी भोजन की कमी नहीं हुई। उनकी विरासत को संभालते हुए कैलाशानंद ब्रह्मचारी ने 2019 के प्रयागराज अर्ध कुंभ मेला का सफल आयोजन किया।
इसी दौरान निरंजनी अखाड़े के साधुओं ने उनसे आचार्य महामंडलेश्वर बनने का आग्रह किया। सनातन के 13 अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर का पद सर्वोच्च होता है, और प्रत्येक अखाड़े में केवल एक ही आचार्य महामंडलेश्वर होता है। निरंजनी और जूना अखाड़े सबसे बड़े माने जाते हैं। 14 जनवरी 2021 को कैलाशानंद ब्रह्मचारी ने ब्रह्मचर्य छोड़कर सन्यासी बनने का निर्णय लिया और कैलाशानंद गिरी के रूप में निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर बने। यह एक ऐतिहासिक क्षण था।
सिद्ध पीठ दक्षिण काली मंदिर
हरिद्वार के चंडी घाट पर स्थित सिद्ध पीठ दक्षिण काली मंदिर देश के दो दक्षिण काली मंदिरों में से एक है (दूसरा कोलकाता में है)। लगभग 1400 वर्ष पूर्व स्थापित इस मंदिर में महायोगी बाबा कामराज ने मां काली को सिद्ध किया था। कैलाशानंद गिरी जी इस मंदिर के पीठाधीश्वर हैं। उनकी साधना का केंद्र यही मंदिर है, जहां वे सावन के पूरे महीने कठिन तप करते हैं।
सावन में वे 20-22 घंटे महादेव की भक्ति में लीन रहते हैं। इस दौरान वे न कुछ खाते हैं, न पीते हैं, न मंदिर से बाहर निकलते हैं। वे मौन व्रत धारण करते हैं, जिसके कारण उनसे बात करना असंभव होता है। उनकी यह साधना कैमरे पर भी रिकॉर्ड की जाती है, और इसके प्रमाण यूट्यूब पर उपलब्ध हैं। नवरात्रि में उनका यंत्रार्चन और महामाई का पुष्पार्चन भी अद्भुत है। वे जिस कक्ष में साधना करते हैं, वहां तापमान 80 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जहां सामान्य व्यक्ति पांच मिनट भी नहीं टिक सकता। फिर भी, कैलाशानंद गिरी जी घंटों साधना करते हैं।
विश्व स्तर पर प्रभाव
कैलाशानंद गिरी जी की साधना और व्यक्तित्व ने विश्व को प्रभावित किया है। हाल के महाकुंभ में नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह, एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेंज जॉब्स, उद्योगपति मुकेश अंबानी, ब्लैक स्टोन के डायरेक्टर अमित डालमिया और गृह मंत्री अमित शाह जैसे लोग उनके सान्निध्य में आए। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके साथ मंच साझा करते हैं। यह सब उनकी 35 वर्षों की अटूट साधना का परिणाम है।
2021 के हरिद्वार कुंभ में, जब कोरोना संकट चरम पर था, कैलाशानंद गिरी जी ने साधुओं के साथ मिलकर कुंभ को बीच में रोकने का निर्णय लिया, जो उनकी सूझबूझ को दर्शाता है। उनकी सादगी, समर्पण और सनातन धर्म के प्रति निष्ठा ने उन्हें सनातन की सबसे बड़ी हस्ती बना दिया।
समर्पण और संघर्ष
कैलाशानंद गिरी जी का जीवन महादेव के उस संदेश को जीवंत करता है कि समर्पण और संघर्ष ही सच्ची भक्ति है। वे कहते हैं, “महादेव जब देते हैं, तो झोली छोटी पड़ जाती है, लेकिन इतनी आसानी से वे देते नहीं।” उनकी साधना सिखाती है कि तप का अर्थ केवल शारीरिक कष्ट नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म से ईश्वर में लीन होना है।
आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी जी महाराज एक ऐसे तपस्वी हैं, जिन्होंने अपनी कठिन साधना से न केवल सनातन धर्म का परचम लहराया, बल्कि विश्व को आध्यात्मिकता का संदेश दिया। सिद्ध पीठ दक्षिण काली मंदिर में उनकी साधना, सावन का मौन व्रत और नवरात्रि का यंत्रार्चन उनकी भक्ति की गहराई को दर्शाते हैं। वे सनातन के सच्चे विद्यार्थी हैं, जिनका जीवन हमें सिखाता है कि श्रद्धा, समर्पण और संघर्ष से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।