Wednesday, May 14, 2025
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लोक संस्कृति संग्रहालय और डॉ. यशोधर मठपाल

उत्तराखंड के नैनीताल जिले में भीमताल-नैनीताल मार्ग पर स्थित लोक संस्कृति संग्रहालय उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति और इतिहास को संजोए हुए एक अनूठा संग्रहालय है। इसकी स्थापना 1983 में पद्मश्री डॉ. यशोधर मठपाल ने की थी, जो एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद्, चित्रकार, और संस्कृति संरक्षक हैं। यह संग्रहालय चार गैलरियों में फैला हुआ है और इसमें करोड़ों साल पुराने जीवाश्म, पाषाण युग के औजार, मध्यकालीन बर्तन, गुफा चित्रों की प्रतिकृतियाँ, और उत्तराखंड की लोक कला एवं परंपराओं से जुड़ी अन्य वस्तुएँ संग्रहीत हैं। यह संग्रहालय न केवल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है, बल्कि शोधकर्ताओं और संस्कृति प्रेमियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण संसाधन है।

डॉ. यशोधर मठपाल का जन्म 6 जून 1939 को अल्मोड़ा जिले के नौला गाँव में हुआ था। उनके पिता, श्री हरिदत्त मठपाल, एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 16 महीने जेल में बिताए और 1966 में एक विद्यालय की स्थापना की। डॉ. मठपाल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मनिला और रानीखेत से प्राप्त की। उन्होंने लखनऊ से फाइन आर्ट्स में डिप्लोमा किया, जहाँ उन्हें स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। बाद में, उन्होंने पुणे से पुरातत्व में पीएचडी प्राप्त की।

बचपन से ही डॉ. मठपाल को रंग-बिरंगे पत्थर इकट्ठा करने और चित्रकारी का शौक था। तीसरी कक्षा से वे स्कूल की दीवारों पर चित्र बनाते थे। उनके इस जुनून ने उन्हें गुफा चित्रों और पुरातत्व के क्षेत्र में ले गया। उन्होंने मध्य प्रदेश के भीमबेटका में 8 वर्ष तक गुफा चित्रों पर शोध किया, जिसके लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली। उन्होंने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, और यूरोप में गुफा चित्रों का अध्ययन किया और विश्वव्यापी पुरातत्वविदों का मार्गदर्शन किया। 1973 में, उन्होंने मध्य प्रदेश में एक संग्रहालय की स्थापना की, जिसे यूनेस्को ने मान्यता दी.

डॉ. मठपाल ने अयोध्या के खुदाई कार्य का भी अध्ययन किया और राम मंदिर निर्माण के लिए प्रसन्नता व्यक्त की। उनके शोध और कला ने उन्हें एक चित्रकार और पुरातत्वविद् के रूप में स्थापित किया। उन्होंने अपने जीवन के हर पल को उत्तराखंड की संस्कृति और कला को संरक्षित करने में समर्पित किया।

लोक संस्कृति संग्रहालय

लोक संस्कृति संग्रहालय की स्थापना डॉ. मठपाल ने अपने निजी संसाधनों से की थी। यह संग्रहालय 5 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है और भीमताल झील से 3 किमी उत्तर में एक पूर्व-मुखी पहाड़ी पर स्थित है। संग्रहालय में चार गैलरियाँ हैं, जो 100 फीट लंबी और 30 फीट चौड़ी हैं। यहाँ प्रदर्शित वस्तुओं में शामिल हैं:

वस्तु का प्रकार

विवरण

जीवाश्म

150 मिलियन वर्ष पुराने जीवाश्म।

पाषाण युग के औजार

प्रागैतिहासिक पत्थर के औजार और हथियार।

गुफा चित्रों की प्रतिकृतियाँ

भीमबेटका, उत्तराखंड, और केरल की गुफा कला की प्रतिकृतियाँ।

मध्यकालीन वस्तुएँ

बर्तन, उपकरण, और दैनिक उपयोग की वस्तुएँ।

लोक कला और जनजातीय प्रदर्शन

उत्तराखंड, तिब्बती, और जनजातीय संस्कृति से जुड़ी कलाकृतियाँ।

संगीत वाद्ययंत्र और वस्त्र

पारंपरिक वाद्ययंत्र, वस्त्र, और आभूषण।

संग्रहालय में डॉ. मठपाल द्वारा बनाए गए चित्र, जलरंग, मिनिएचर, और ऐपण कला के नमूने भी उपलब्ध हैं। वे जनता से पुराने हस्तलेख, ग्रंथ, या बर्तन दान करने की अपील करते हैं। संग्रहालय अप्रैल से सितंबर तक सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक और अक्टूबर से मार्च तक सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक खुला रहता है। यह सोमवार और राष्ट्रीय अवकाश पर बंद रहता है।

डॉ. मठपाल और उनके पुत्र सुरेश मठपाल संग्रहालय का संचालन करते हैं। डॉ. मठपाल स्वयं आगंतुकों को गाइड करते हैं और प्रत्येक वस्तु की कहानी बताते हैं। संग्रहालय में उनकी लिखी पुस्तकों का संकलन भी उपलब्ध है, जैसे:

  • “भीमबेटका, प्रीहिस्टोरिक रॉक पेंटिंग्स ऑफ सेंट्रल इंडिया” (1984)

  • “डियर इन रॉक आर्ट ऑफ इंडिया एंड यूरोप” (1993)

  • “रॉक आर्ट इन कुमाऊँ हिमालय” (1995)

  • “संहिता” (श्री अल्मोड़ा बुक डिपो)

  • “रॉक आर्ट इन केरल” (1998)

चुनौतियाँ

संग्रहालय की स्थापना और संचालन में डॉ. मठपाल को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने इसे अपने निजी संसाधनों से बनाया, लेकिन भूमि माफिया और कानूनी विवादों ने इसे बनाए रखना मुश्किल कर दिया। उन्होंने बताया कि 8 नाली जमीन, जिसकी कीमत अब 1.5 करोड़ रुपये है, पर संग्रहालय बनाया गया, लेकिन भूमि विवादों के कारण उन्हें कोर्ट में लड़ाई लड़नी पड़ रही है। इसके बावजूद, वे अपनी धरोहर को बचाने के लिए अडिग हैं।

वैश्वीकरण और आधुनिकीकरण के दौर में उत्तराखंड की लोक संस्कृति तेजी से विलुप्त हो रही है। डॉ. मठपाल का मानना है कि यदि इसे संरक्षित नहीं किया गया, तो भावी पीढ़ियों को अपनी जड़ों से कोई परिचय नहीं रहेगा। संग्रहालय को सरकारी सहायता की कमी और अनियमित वित्तीय संसाधनों के कारण भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

सम्मान और पुरस्कार

डॉ. यशोधर मठपाल को उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए हैं। 2006 में, उन्हें राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें राष्ट्रीय कला श्री और उज्जैन से कालिदास पुरस्कार भी मिला। 2012 में, नई दिल्ली में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय रॉक आर्ट सम्मेलन में उपराष्ट्रपति ने उन्हें सम्मानित किया।

उन्होंने विश्वभर में 30 से अधिक प्रदर्शनियाँ आयोजित की हैं, जो प्रागैतिहासिक कला, पत्थरों, और जीवाश्मों पर आधारित थीं। उनकी थीसिस को भारत सरकार की सचिव डॉ. कपिला वात्स्यायन ने सराहा, जिसके आधार पर उन्हें भोपाल में राष्ट्रीय मानव संग्रहालय की स्थापना में सहयोग करने का अवसर मिला।

लोक संस्कृति संग्रहालय न केवल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, बल्कि डॉ. यशोधर मठपाल की अथक मेहनत, समर्पण, और गांधीवादी दर्शन का भी प्रतीक है। उनके द्वारा किए गए कार्य ने न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे भारत और विश्व को प्रेरित किया है। यह संग्रहालय पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए उत्तराखंड की गौरवशाली संस्कृति और इतिहास की कहानी कहता है। डॉ. मठपाल का यह प्रयास हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने और उन्हें संरक्षित करने की प्रेरणा देता है।

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