NTI ( मोहन भुलानी, अर्जुन रावत): पहाड़ों की गोद में बसे लोग हमेशा से अपनी मेहनत और जज़्बे के लिए जाने जाते हैं। लेकिन रोज़गार की कमी और पलायन की समस्या ने पहाड़ में रहने वाले लोगों को कई चुनौतियों से जूझने के लिए मजबूर कर दिया है। ऐसे में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो न सिर्फ पहाड़ों में रहकर कुछ अलग कर रहे हैं, बल्कि पहाड़ों में रोजगार को संवारने के साथ पहाड़ के लोगों के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरे हैं। आज की यह कहानी है गढ़वाल-कुमाऊं के सीमांत क्षेत्र में स्थित बीरोखाल ब्लॉक के सीली गांव की, जहां Ambe Phytoextracts Pvt. Ltd नाम की कंपनी न केवल रोज़गार के नए अवसर पैदा कर रही है, बल्कि पहाड़ी जीवन को एक नई दिशा भी दे रही है। यह पहाड़ में इंडस्ट्री लगाने का एक शानदार उदाहरण है
Ambe Phytoextracts Pvt. Ltd कंपनी के मजबूत स्तम्भ हैं हर्षपाल चौधरी, जो यहीं के निवासी हैं और पेशे से माइक्रोबायोलॉजिस्ट हैं। हर्षपाल ने अपने गांव में ही इस शानदार कंपनी की स्थापना की, जिसका मकसद न सिर्फ व्यवसाय करना है, बल्कि अपने क्षेत्र के लोगों को आत्मनिर्भर बनाना भी है। उनकी सोच और विज़न ने इस कंपनी को एक अनूठा रूप दिया है। यह कंपनी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से extracts तैयार करती है, ये extracts हेल्थ सप्लीमेंट्स, खाने की खास चीजों और सौंदर्य प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल किया जाता है। कंपनी प्रकृति का ख्याल रखते हुए लोगों को सेहतमंद और खुशहाल बनाने में लगी हैं।
2022 में कंपनी ने अपनी एक शानदार रिसर्च लैब शुरू की। इस लैब की मदद से अब वो तेजी से नए प्रोडक्ट्स बना रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि बाजार में ऐसी चीजें लाएं जो टेस्टेड हों और लोगों की सेहत के लिए अच्छी हों। दुनिया में नैचुरल हेल्थकेयर की डिमांड बढ़ रही है, और कंपनी अपने ग्राहकों को सबसे बेहतर देने के लिए दिन-रात मेहनत कर रही है।
Ambe Phytoextracts Pvt. Ltd के जनरल मैनेजर डॉ. सी.एस. जोशी बताते हैं, “हम शिवालिक हिमालय में हैं, जहां हजारों साल पहले ऋषि-मुनियों ने जड़ी-बूटियों से दवाइयां बनाई थीं। हम इनका इस्तेमाल बेहतर करते हैं और 90% से ज्यादा प्रोडक्ट्स विदेश भेजते हैं। यूएस, इजराइल, यूरोप, जापान और कोरिया हमारे बड़े बाजार हैं।” पहले कंपनी सिर्फ पौधों से अर्क बनाती थी, लेकिन अब काम बढ़ा है। वो ब्रांडेड अर्क, खास सामग्रियां, सौंदर्य प्रोडक्ट्स की चीजें और कैरोटेनॉयड्स भी बना रहे हैं। इससे हेल्थ, आयुर्वेद, खाने-पीने और स्किन केयर इंडस्ट्री तक उनकी पहुंच है। खास बात ये है कि सब कुछ पौधों से या बैक्टीरिया की मदद से बनता है – यानी पूरी तरह शुद्ध और प्राकृतिक।
कंपनी स्वास्थ्य, पोषण और सौंदर्य के लिए कई चीजें तैयार करती है, जैसे:
- हर्बल एक्सट्रैक्ट्स (पौधों से बने अर्क)
- न्यूट्रास्युटिकल्स (सेहत के लिए खास चीजें)
- फार्मास्युटिकल एक्टिव इंग्रीडिएंट्स (दवाइयों के लिए सामग्री)
- स्प्रे-ड्राइड फ्रूट और वेजिटेबल पाउडर (फल-सब्जियों का पाउडर)
- ओलियोरेसिन्स (मसालों के अर्क)
- आवश्यक तेल (एसेंशियल ऑयल्स)
- कॉस्मेस्युटिकल्स (सौंदर्य के लिए खास सामग्री)
स्थानीय लोगों की जुबानी
सीली गांव और इसके आसपास के इलाकों से कई लोग इस कंपनी में काम करते हैं। इनमें से कुछ लोगों ने अपनी बात हमसे साझा की।
सुरजी देवी बताती हैं, “मेरा नाम सुरजी देवी है। मैं सिलीमली से हूं और पिछले 14 साल से यहां प्रोडक्शन में काम कर रही हूं। मेरा काम पैकिंग का है, जैसे कैप्सूल और दवाइयों की पैकिंग। ट्रेनिंग के लिए हमें दिल्ली भी ले जाया गया था।” जब उनसे पूछा गया कि गांव में रोज़गार मिलने से क्या फर्क पड़ा, तो उन्होंने कहा, “हमें बहुत अच्छा लगता है। बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती। हमारे गांव में ही रोज़गार है, इससे बढ़िया क्या हो सकता है?”
सरिता जो किनात मोहल्ले से हैं और पिछले 7 साल से यहां काम कर रही हैं, कहती हैं, “मैं यहां कमरा लेकर रहती हूं। मेरे बच्चे सुंदरनगर में पढ़ते हैं। गांव 10 किलोमीटर दूर है, तो कभी-कभी वहां भी चली जाती हूं। लेकिन यहां काम करने से जिंदगी आसान हो गई है।”
परमिला देवी ने भी अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, “मुझे 6-7 साल हो गए यहां काम करते। घर के पास जॉब मिल गई, बच्चे भी संभल जाते हैं और थोड़ी-बहुत खेतीबाड़ी भी हो जाती है। 10:30 से 5 बजे तक की शिफ्ट में काम करके घर और नौकरी दोनों मैनेज हो जाते हैं। सैलरी भी समय पर मिलती है और गुजारा अच्छे से हो जाता है।”
शिव सिंह, जो पहले रुद्रपुर में काम करते थे, अब 4 साल से यहां हैं। वे कहते हैं, “यहां का वातावरण, हवा-पानी सब शुद्ध है। बाहर किराए और गर्मी की परेशानी थी। अब घर में हूं, खेतीबाड़ी भी कर लेता हूं। बाइक से अप-डाउन करता हूं, सब मैनेज हो जाता है।”
बालम सिंह, जो पहले म्यूजिक बैंड चलाते थे, अब प्रोडक्शन में पैकिंग का काम करते हैं। वे कहते हैं, “पहले बहुत जगह काम किया, लेकिन अब परिवार के साथ यहीं हूं। पहाड़ में ही मजा आता है।”
भारत चौधरी, जो पहले गाड़ी चलाते थे, अब 5-6 साल से यहां हैं। वे बताते हैं, “यहां घर के पास काम मिला, खेत भी संभल जाते हैं। दिल्ली में जो कमाई होती, वो यहां मिल रही है। सब्जियां घर से ही आती हैं, तो पैसा भी बचता है।”
सत्येंद्र चौधरी, जिनका पहले ट्रांसपोर्ट का काम था, अब 7-8 साल से कंपनी में हैं। वे कहते हैं, “यहां का माहौल बहुत अच्छा है। ओनर के साथ-साथ कर्मचारी और आसपास के लोग भी कमाते हैं। दुकानदारों, किसानों और मकान मालिकों का काम बढ़ा है। पैकेज भी उत्तराखंड सरकार के मानक से ज्यादा है।”
नरेश चौधरी, जो आर्मी से रिटायर होकर आए, अब प्रोडक्शन में काम सीख रहे हैं। वे कहते हैं, “मैंने सोचा जब नेपाल और दूर से लोग यहां काम करने आ रहे हैं, तो मैं अपने गांव में क्यों न रहूं? घर नजदीक है, बच्चे काशीपुर में पढ़ते हैं, वीकेंड पर मिल आता हूं। सैलरी से संतुष्ट हूं।”
चुनौतियां और संभावनाएं
जनरल मैनेजर डॉ. जोशी ने यह भी बताया कि रॉ मटेरियल की कॉस्टिंग थोड़ी ज्यादा होती है, लेकिन प्रोडक्ट को एडवांस बनाकर प्रॉफिट मार्जिन बढ़ाया जाता है। हालांकि, उन्होंने सरकार से ज्यादा सपोर्ट की जरूरत पर जोर दिया। “चाइना की तरह टैक्स छूट और बैकअप मिले तो पहाड़ों में और इंडस्ट्रीज लग सकती हैं।”
Ambe Phytoextracts Pvt. Ltd न सिर्फ एक कंपनी है, बल्कि पहाड़ों में रोज़गार और आत्मनिर्भरता की एक मिसाल है। यह साबित करती है कि सही सोच और मेहनत से पहाड़ों में भी बड़े सपने पूरे किए जा सकते हैं। हर्षपाल चौधरी और उनकी टीम ने न केवल अपने गांव को नई पहचान दी, बल्कि पलायन को रोकने की दिशा में भी एक बड़ा कदम उठाया है।