वहीं, नए वित्त वर्ष में राज्य की विकास दर इस साल की तुलना में कम होगी। कांग्रेस ने माना कि सत्ता में रहने वालों को इस तरफ ध्यान देना चाहिए। हैरानी की बात तो ये है कि अलग राज्य बनने के बाद भी यह हालात हैं। बता दें, आर्थिक सर्वेक्षण के मामले में असम के बाद उत्तराखंड दूसरे नंबर पर है, जहां प्रदेश को आर्थिक सर्वेक्षण में विकास दर बढ़ाने की चुनौती थी लेकिन विकास दर में गिरावट आने से प्रदेशवासियों को काफी बड़ा झटका लगा है और जो चुनौती छोटी थी, अब उसने बड़ा रूप ले लिया है।
गौर करने वाली बात ये अब ये होगी कि अब इस विकास दर की गिरावट को रोकने में किस प्रकार सरकार अब आगे कदम बढ़ाएगी। गैरसैंण विधानसभा में कर बजट सत्र के दौरान आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट रखी गई, जिसमें मई 2017-18 विकास दर 6.77 फ़ीसदी के आसपास बताई गई।
राज्य के 13 जिलों में प्रति व्यक्ति आय अलग–अलग जिलों में अलग है। हरिद्वार में ये सबसे अधिक 2,54,050 रुपए आंकी गई है, जबकि रुद्रप्रयाग प्रति व्यक्ति आय में सबसे नीचे है। यहां ये आंकड़ा 83,521 रुपए है। ये राज्य की प्रति व्यक्ति आय में बड़े अंतर को साबित करता है।
साल 2018 में राज्य का राजकोषीय घाटा भी बढ़ने की उम्मीद है। साल 2016-17 में 2.31 फीसदी की तुलना में राजकोषीय घाटा साल 2017-18 में 2.51 फीसदी रहने का अनुमान है।
वहीं, इससे पहले 2016-17 के सर्वे में प्रदेश की विकास दर 6.95 फीसदी आंकी गई थी। ऐसे में अब यह विकास दर घटने से प्रदेश के सामने अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने की चुनौती दोगुनी हो गई है, जो कहीं न कहीं त्रिवेंद्र सरकार के लिए सिर का दर्द है।
विपक्ष ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार में विकास दर काफी अच्छी थी लेकिन बीजेपी ने प्रदेश के विकास के लिए कोई काम नहीं किए हैं जिसकी वजह से ये दिन देखना पड़ा है। कांग्रेसियों ने राज्य सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि बीजेपी ने ग्रामीण और परिवर्तित क्षेत्रों में कृषि और घरेलू उत्पादों को बिलकुल भी बढ़ावा नहीं दिया जिसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ रहा है।
सरकार पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि और मत्स्य सहित घरेलू उत्पादों में लगातार पिछड़ रही है। उत्तराखंड सरकार को चाहिए कि वह पर्वतीय क्षेत्रों और सीमांत गांव में भी कृषि उत्पादों सहित फसलों पर ध्यान दे, साथ ही सहकारिता को लेकर अपनी स्थिति ठीक करे, जिसको लेकर विकास दर में बढ़ोतरी होना संभव है।