Wednesday, March 5, 2025
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उत्तरकाशी में भूकंप के झटकों से दहशत, वैज्ञानिकों ने बताए कारण

NTI: उत्तरकाशी जिला मुख्यालय और आसपास के क्षेत्रों में लगातार आ रहे भूकंप के झटकों से लोगों में दहशत का माहौल बना हुआ है। इन भूकंपों की प्रमुख वजह हिमालय की गोद में स्थित उत्तरकाशी जनपद से गुजरने वाला मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) या मुख्य केंद्रीय भ्रंश बताया जा रहा है। भूवैज्ञानिकों के अनुसार, इस क्षेत्र के नीचे लगातार विवर्तनिक हलचल होती रहती है, जिससे भूकंप की घटनाएं घटित होती हैं।

भूगर्भीय कारण और हिमालय की उत्पत्ति

विशेषज्ञों के अनुसार, लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व हिमालय का निर्माण भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के टकराने से हुआ था। भारतीय प्लेट अभी भी यूरेशियन प्लेट की ओर बढ़ रही है, जिससे मुख्य केंद्रीय भ्रंश (MCT) का निर्माण हुआ। यह भ्रंश वृहत हिमालय को लघु हिमालय से अलग करता है और उत्तर तिब्बत की ओर ढलान लिए हुए है। यह भ्रंश उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व दिशा में लगभग 2200 किलोमीटर तक फैला हुआ है।

हिमालय क्षेत्र में मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) के अलावा, मेन बाउंड्री थ्रस्ट (MBT) लघु हिमालय और शिवालिक हिमालय के बीच स्थित है। वहीं, हिमालयन फ्रंट फॉल्ट (HFF) शिवालिक और विशाल मैदान के बीच स्थित है। भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार, इन भ्रंश रेखाओं के कारण ही हिमालय और इसके आसपास के क्षेत्रों में विनाशकारी भूकंप आते रहते हैं।

भूकंप के कारण

उत्तरकाशी का क्षेत्र भूगर्भीय दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील है क्योंकि यह हिमालय की मुख्य केंद्रीय भ्रंश (Main Central Thrust – MCT) रेखा पर स्थित है। यह भ्रंश रेखा वृहद हिमालय और लघु हिमालय को अलग करती है। हिमालय का निर्माण लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के टकराव से हुआ था, और यह प्लेटें आज भी एक-दूसरे की ओर बढ़ रही हैं। इस सतत विवर्तनिक गतिविधि के कारण ऊर्जा का संचय होता है, जो समय-समय पर भूकंप के रूप में बाहर निकलती है।

इलाके की संवेदनशीलता

उत्तराखंड विशेष रूप से जोन IV और V में आता है, जो भूकंप की दृष्टि से भारत के सबसे संवेदनशील क्षेत्र हैं। 1991 में उत्तरकाशी में आए 6.6 तीव्रता के भूकंप ने बड़ी तबाही मचाई थी। इसके अलावा, चमोली (1999) और रुद्रप्रयाग (2017) जैसे अन्य क्षेत्रों में भी बड़े भूकंप दर्ज किए गए हैं। उत्तरकाशी और आसपास के क्षेत्र हिमालयन थ्रस्ट ज़ोन (MCT, MBT, और HFF) के कारण लगातार छोटे-मोटे झटकों का सामना करते रहते हैं।

पिछले छह दिनों में उत्तरकाशी में आठ बार भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं।

  • 24 जनवरी को तीन झटके आए, जिनमें से दो 2.5 और 3.5 मैग्नीट्यूड के थे, जबकि एक हल्का झटका रिक्टर स्केल पर दर्ज नहीं किया गया।
  • 25 जनवरी को दो झटके महसूस किए गए, जिनमें पहला 2.4 मैग्नीट्यूड का था और दूसरा रिक्टर स्केल पर दर्ज नहीं हुआ।
  • बुधवार और गुरुवार को भी 2.7 मैग्नीट्यूड के झटके आए।

लगातार आ रहे इन झटकों से स्थानीय लोग भयभीत हैं और सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। प्रशासन द्वारा लोगों को सतर्क रहने और किसी भी आपातकालीन स्थिति में सुरक्षित स्थानों पर जाने की सलाह दी गई है।

उत्तरकाशी और हिमालयी क्षेत्रों में भूकंप के बढ़ते मामलों को देखते हुए वैज्ञानिकों का कहना है कि इस क्षेत्र में मजबूत निर्माण तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए। साथ ही, प्रशासन और स्थानीय लोगों को भूकंप सुरक्षा उपायों के प्रति जागरूक रहना आवश्यक है। हिमालय की भूगर्भीय स्थिति को देखते हुए इस क्षेत्र में भविष्य में भी भूकंप आने की संभावना बनी हुई है।

स्थानीय प्रशासन ने लोगों से सुरक्षित स्थानों पर रहने और किसी भी आपात स्थिति के लिए तैयार रहने की अपील की है। साथ ही, वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हिमालयी क्षेत्र में भविष्य में बड़े भूकंप आ सकते हैं, इसलिए संरचनात्मक मजबूती और आपदा प्रबंधन योजनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इस प्रकार, उत्तरकाशी का मामला हिमालयी क्षेत्रों की भूगर्भीय संवेदनशीलता का स्पष्ट उदाहरण है, जो सतत निगरानी और तैयारी की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

 

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