NTI (मोहन भुलानी) : क्या आपको पता है कि हिमाचल प्रदेश में 2 ऐसे गांव हैं, जिनकी समृद्धि के किस्से न सिर्फ भारत में, बल्कि पूरे एशिया महाद्वीप में मशहूर हैं? ये गांव अपनी मेहनत और प्राकृतिक संसाधनों के बल पर अमीरी की मिसाल बन गए। सेब के बागानों से करोड़ों की कमाई होती है। सेब के बागानों की बदौलत इन गांवों की समृद्धि बरक़रार है।
क्यारी: सेब की खेती का स्वर्ण युग
शिमला जिले के कोटखाई इलाके में बसे क्यारी गांव, जो 1996 से 2016 तक पूरे 20 सालों तक एशिया का सबसे अमीर गांव रहा। इस गांव को समृद्धि की ऊंचाइयों तक पहुंचाने का श्रेय यहां के बागवानों को जाता है। क्यारी की जमीन सेब की खेती के लिए इतनी उपजाऊ थी कि किसानों ने इसे एक बड़े व्यापार में बदल दिया। यहां उगने वाले सेब न सिर्फ देश भर में, बल्कि विदेशों तक में बिकते थे।
90 के दशक में जब सेब की मांग बढ़ी, तो क्यारी के किसान करोड़पति बन गए। हर घर में सेब की पेटियां भरी रहती थीं, और सीजन के दौरान ट्रकों की लंबी कतारें सेब लेने के लिए लगी रहती थीं। उस समय इस गांव की कमाई इतनी थी कि इसे एशिया के सबसे अमीर गांव का दर्जा मिला। हालांकि, समय के साथ नई किस्मों के सेब और दूसरे इलाकों में बढ़ते उत्पादन ने क्यारी की प्रसिद्धि को थोड़ा कम किया, लेकिन आज भी यह गांव करोड़ों का कारोबार करता है और अपनी पहचान बनाए हुए है।
मड़ाव: सेब का नया बादशाह
अब बात उस गांव की, जिसने क्यारी का रिकॉर्ड तोड़ दिया और आज भी एशिया के सबसे अमीर गांवों में शुमार है। यह है शिमला जिले के चौपाल तहसील में बसा मड़ाव, जहां की पूरी अर्थव्यवस्था सेब की बागवानी पर टिकी है। 2016 में इसे एशिया का सबसे अमीर गांव घोषित किया गया, और तब से यह दर्जा कायम है। मड़ाव के सेब की खासियत है यहां की पुरानी रॉयल किस्म, जो दुनिया भर में मशहूर है। गांव में आज भी 100 साल पुराने सेब के पेड़ मौजूद हैं, जिनकी पैदावार लाजवाब होती है।
यहां के बागवानों ने नौकरी की बजाय अपने पूर्वजों की बागवानी को चुना और इसे आगे बढ़ाया। नतीजा यह हुआ कि वे करोड़पति बन गए। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मड़ाव के लोग हर साल करीब 175 करोड़ रुपये के सेब बेचते हैं। यहां हर परिवार की औसत सालाना कमाई 75 लाख रुपये से ज्यादा है। मड़ाव के सेब भारत ही नहीं, विदेशों तक में निर्यात होते हैं। इस गांव की अमीरी की शुरुआत 1954 में हुई, जब एक किसान चैयाराम मेहता ने पहली बार सेब के पौधे लगाए। 1966 में पहली फसल से 8,000 रुपये की कमाई हुई, जो उस वक्त बड़ी रकम थी। इसके बाद पूरे गांव ने सेब की खेती को अपनाया, और आज यह हिमाचल के सबसे समृद्ध स्थानों में शामिल है।
मेहनत की मिसाल
क्यारी ने दो दशकों तक सेब की बागवानी से शीर्ष पर कब्जा जमाया, और मड़ाव आज अपनी शानदार सेब की पैदावार से समृद्धि की ऊंचाइयों को छू रहा है। हिमाचल की ये कहानियां साबित करती हैं कि मेहनत और सही सोच हो, तो गांव भी शहरों से ज्यादा समृद्ध हो सकते हैं। तो ये थे हिमाचल के 2 सबसे अमीर गांव, जिनकी मेहनत और दूरदर्शिता ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया। इन गांवों की कहानी प्रेरणा देती है कि संसाधनों का सही इस्तेमाल और लगन किसी भी जगह को समृद्ध बना सकती है।