NTI (मोहन भुलानी) : देवभूमि उत्तराखंड, प्राचीन मंदिरों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है, में एक अनोखा और महत्वपूर्ण मंदिर स्थित है, जो भगवान राम के अनुज भगवान लक्ष्मण को समर्पित है। देश भर में लक्ष्मण को समर्पित मंदिरों की संख्या बहुत कम है, और इनमें लक्ष्मण लोकपाल मंदिर अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। यह मंदिर हेमकुंड साहिब में अवस्थित है, जो अपनी पवित्रता और ऐतिहासिकता के लिए जाना जाता है। दुर्भाग्यवश, यह मंदिर शुरू से ही सरकारी उपेक्षा का शिकार है। इतने महत्वपूर्ण और विशिष्ट होने के बावजूद, लक्ष्मण लोकपाल मंदिर उत्तराखंड सरकार के पर्यटन मानचित्र में अपनी उचित जगह नहीं बना पाया है।
आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व
लक्ष्मण लोकपाल मंदिर लोकपाल सरोवर, जिसे हेमकुंड (बर्फ का तालाब) के पास स्थित है। यह सरोवर उत्तराखंड के चमोली जिले में 15,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और अपनी अलौकिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत काल में पांडवों ने इसी स्थान पर कठोर तपस्या की थी, जिसका उल्लेख महाभारत ग्रंथ में भी मिलता है। स्कंद पुराण और नारदीय पुराण में इस तीर्थ की स्थापना को भगवान विष्णु के अंश से जोड़ा गया है। इसे गिरि पर्वत के रूप में वर्णित किया गया है, जो सप्तर्षियों का निवास स्थान माना जाता है और सप्तश्रृंगी के नाम से भी विख्यात है।
कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस स्थान पर गर्म जल के स्रोत (हॉट स्प्रिंग्स) थे, जिन्हें भगवान विष्णु ने अपने दंड से तोड़कर जल प्राप्ति के लिए उपयोग में लाया। एक अन्य मान्यता के अनुसार, शेषनाग ने इसी सरोवर में तपस्या की थी और बाद में दशरथ के पुत्र लक्ष्मण के रूप में अवतार लिया। इसके अलावा, यह भी विश्वास है कि रामायण युद्ध में मेघनाद को मारने के पश्चात् लक्ष्मण ने अपनी खोई शक्तियों को पुनः प्राप्त करने के लिए इसी स्थान पर कठोर तप किया था। इन पौराणिक कथाओं के कारण लोकपाल सरोवर और इसके निकट स्थित लक्ष्मण मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है, जो सदियों पुराना इतिहास समेटे हुए है।
सरकारी उपेक्षा का दंश
हैरानी की बात है कि इतने प्राचीन और पवित्र मंदिर को भारत सरकार के पर्यटन विभाग ने अपने आधिकारिक पोर्टल पर स्थान नहीं दिया है, न ही इसके बारे में लोगों को जागरूक करने का कोई प्रयास किया गया है। पर्यटन विभाग के पोर्टल पर चारधाम, हेमकुंड साहिब और अन्य तीर्थ स्थलों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध है, लेकिन लक्ष्मण लोकपाल मंदिर का कोई उल्लेख नहीं है। चमोली जिला प्रशासन का रवैया भी इसी तरह का है—उसके पोर्टल पर भी इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। हेमकुंड साहिब के बारे में विस्तृत विवरण दिए जाने के बावजूद, इसके निकट स्थित लक्ष्मण मंदिर को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया है।
यह मंदिर सदियों से हिंदू श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण रहा है, लेकिन हेमकुंड साहिब की यात्रा पर आने वाले भक्तों में से ज्यादातर को इसकी जानकारी नहीं होती। परिणामस्वरूप, यह मंदिर धीरे-धीरे अपनी पहचान खोता जा रहा है। उत्तराखंड सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अनेक योजनाएं चला रही है, लेकिन ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों के संरक्षण में उसकी उदासीनता चिंताजनक है। जब सरकार चारधाम और हेमकुंड साहिब के फाटक खुलने की बात करती है, तो लोकपाल सरोवर और इसके मंदिर को भूल जाना समझ से परे है।
पहाड़ी सरोकारों के चिंतक ” उदित घिल्डियाल ” कहते है कि उत्तराखंड सरकार से मेरा विनम्र निवेदन है कि वह इस ऐतिहासिक मंदिर के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाए। मंदिर को पर्यटन मानचित्र में शामिल करना, इसके प्रचार-प्रसार के लिए जागरूकता अभियान चलाना, और तीर्थयात्रियों के लिए मूलभूत सुविधाएं प्रदान करना आवश्यक है। यह न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का सम्मान होगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देगा। उम्मीद है कि सरकार इस मंदिर को अन्य तीर्थ स्थलों की तरह उचित सम्मान देगी और इसके संरक्षण के लिए पहल करेगी।
लक्ष्मण लोकपाल मंदिर तक का सफर
यदि आप उत्तराखंड के तीर्थ स्थलों की यात्रा पर हैं, तो लक्ष्मण लोकपाल मंदिर के दर्शन अवश्य करें। यह मंदिर ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग के निकट स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको ऋषिकेश से गोविंदघाट तक जाना होगा, जो लगभग 275 किलोमीटर की दूरी पर है। इस यात्रा के दौरान आप श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, जोशीमठ जैसे खूबसूरत स्थानों से गुजरेंगे। गोविंदघाट पहुंचने के बाद, लगभग 18 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी पड़ती है, जो पहाड़ी चढ़ाई के रूप में थोड़ी चुनौतीपूर्ण हो सकती है, लेकिन प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक शांति के लिए यह प्रयास सार्थक है।
संरक्षण की आवश्यकता
लक्ष्मण लोकपाल मंदिर की अनदेखी केवल एक अलग घटना नहीं, बल्कि उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों के प्रति असमान ध्यान देने का एक उदाहरण है। जबकि बदरीनाथ, केदारनाथ जैसे बड़े मंदिरों पर भारी निवेश और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं, छोटे लेकिन महत्वपूर्ण मंदिर जैसे लक्ष्मण लोकपाल उपेक्षित हैं। यह स्थिति क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को नुकसान पहुंचा सकती है और उन भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती है जो इन स्थानों को पवित्र मानते हैं।
इस मंदिर का पर्यटन और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में अपार संभावनाएं हैं। रामायण, पांडवों और भगवान विष्णु से जुड़ी इसकी कथाएं इसे विभिन्न श्रद्धालुओं और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना सकती हैं। इसके प्रचार से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, जिसमें आतिथ्य, गाइडिंग और संरक्षण से संबंधित रोजगार सृजन शामिल है। हाल ही में हेमकुंड साहिब और अन्य तीर्थ स्थलों के लिए रोपवे परियोजनाओं (जैसे मार्च 2025 में स्वीकृत गोविंदघाट-हेमकुंड साहिब 12.4 किमी रोपवे) पर ध्यान देना सरकार की पहुंच बढ़ाने की क्षमता को दर्शाता है। इसी तरह की पहल लक्ष्मण लोकपाल मंदिर के लिए भी की जानी चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल का कहना है कि लक्ष्मण लोकपाल मंदिर उत्तराखंड की आध्यात्मिक विरासत का एक अनमोल रत्न है। सरकार की इसकी अनदेखी न केवल भक्तों के प्रति अन्याय है, बल्कि राज्य की पर्यटन संभावनाओं के लिए भी हानिकारक है। उत्तराखंड को वैश्विक आध्यात्मिक गंतव्य के रूप में स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए, सभी पवित्र स्थलों—चाहे वे बड़े हों या छोटे—को बराबर सम्मान और देखभाल मिलनी चाहिए।
अगर आप उत्तराखंड के तीर्थ स्थलों की यात्रा पर हैं, तो लक्ष्मण लोकपाल मंदिर के दर्शन करना न भूलें। इसकी शांतिपूर्ण वातावरण और पौराणिक महत्व का अनुभव करें, और इसके संरक्षण के लिए आवाज उठाएं। आशा है कि उत्तराखंड सरकार इस मंदिर को पर्यटन और सांस्कृतिक ढांचे में शामिल करेगी, ताकि इसकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए बची रहे।