देहरादून (NTI) : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को ऋषिकेश के भानियावाला से बनाई जा रही फोर लेन सड़क के निर्माण के दौरान करीब 3400 पेड़ों के कटान से संबंधित मामले की सुनवाई की। नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) की ओर से कोर्ट को बताया गया कि उन्होंने वन्यजीव प्रबंधन और एलिफेंट कॉरिडोर को संरक्षित करने के लिए पहले ही प्रभावी कदम उठाए हैं।
सुनवाई के दौरान कोर्ट की खंडपीठ ने प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट (पीसीसीएफ) वाइल्डलाइफ, फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट और एनएचएआई के प्रोजेक्ट मैनेजर को निर्देश दिए कि वे आपस में बैठक कर यह सुनिश्चित करें कि सड़क निर्माण के दौरान एलिफेंट कॉरिडोर को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 4 अप्रैल की तारीख तय की है।
सुनवाई के दौरान पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ, वन संरक्षक (वीसी) और प्रोजेक्ट मैनेजर व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित हुए। कोर्ट ने उनसे पूछा कि सड़क चौड़ीकरण की जद में आने वाले पेड़ों को कहां स्थानांतरित किया जा सकता है। इसके साथ ही एलिफेंट, बिग कैट, रेप्टाइल और अन्य जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए क्या व्यवस्थाएं की जा सकती हैं। कोर्ट ने सभी संबंधित विभागों को एक निश्चित तिथि पर बैठक कर इस संबंध में अपनी रिपोर्ट अगली सुनवाई में पेश करने का आदेश दिया।
यह मामला देहरादून की निवासी रीनू पाल द्वारा दायर जनहित याचिका के आधार पर शुरू हुआ। याचिका में कहा गया कि ऋषिकेश-भानियावाला के बीच सड़क चौड़ीकरण के लिए 3300 से अधिक पेड़ों को काटने के लिए चिह्नित किया गया है। यह क्षेत्र एलिफेंट कॉरिडोर के मध्य में पड़ता है, जिसके कारण हाथियों और अन्य जंगली जानवरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि इस निर्माण से जानवरों की दिनचर्या प्रभावित होगी, इसलिए इस पर रोक लगाई जानी चाहिए।
गौरतलब है कि उत्तराखंड हाईकोर्ट के पूर्व हस्तक्षेप के बाद ही शिवालिक एलिफेंट रिजर्व को संरक्षित किया गया था। मौजूदा मामले में भी कोर्ट पर्यावरण संरक्षण और विकास के बीच संतुलन बनाने की दिशा में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। कोर्ट ने सभी पक्षों को निर्देश दिया कि वे इस मुद्दे पर गहन विचार-विमर्श करें और अगली सुनवाई में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें। अब इस मामले की अगली सुनवाई 4 अप्रैल को होगी, जिसमें यह तय होगा कि सड़क निर्माण और वन्यजीव संरक्षण के बीच कैसे सामंजस्य स्थापित किया जाए। इस सुनवाई से स्पष्ट है कि उत्तराखंड हाईकोर्ट पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को लेकर गंभीर है और विकास कार्यों में प्रकृति के हितों को भी प्राथमिकता देने का प्रयास कर रहा है।