NTI (मोहन भुलानी ): कॉफी- दुनिया में सबसे ज्यादा पिया जाने वाला यह पेय आज 50 से अधिक देशों में उगाया जाता है और इसका बाजार 200 अरब डॉलर का विशाल आकार ले चुका है। हर दिन करीब 3 अरब कप कॉफी पी जाती है, और विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2050 तक यह आंकड़ा 6 अरब कप प्रतिदिन तक पहुँच सकता है। यह तेजी से बढ़ता ट्रेंड जितना रोमांचक है, उतना ही चिंताजनक भी। लेकिन इस चुनौती में भारत जैसे देशों के लिए सुनहरे अवसर भी छिपे हैं।
कॉफी की शुरुआत: एक बकरी से शुरू हुई कहानी
कॉफी की कहानी 9वीं शताब्दी में इथियोपिया से शुरू होती है। एक लोककथा के अनुसार, एक चरवाहे काल्डी ने देखा कि उसकी बकरियाँ लाल कॉफी बीज खाने के बाद ज्यादा चंचल और ऊर्जावान हो गईं। उसने यह बात सूफियों को बताई, जिन्होंने इन बीजों को भूनकर एक पेय बनाया। इस ड्रिंक ने उन्हें देर रात तक इबादत करने की ताकत दी। धीरे-धीरे कॉफी इथियोपिया से यमन के मोक़ा शहर पहुँची, फिर मक्का, मदीना और 16वीं शताब्दी तक यह ईरान, इराक, मिस्र, सीरिया और तुर्की तक फैल गई।
यूरोप में कॉफी का आगमन इटली के वेनिस शहर से हुआ। वहाँ यह इतनी लोकप्रिय हुई कि कुछ पादरियों ने इसे “शैतान का कड़वा अविष्कार” कहकर प्रतिबंधित करने की माँग की। लेकिन पोप क्लेमेंट VIII ने इसे चखकर कहा, “यह ड्रिंक इतनी स्वादिष्ट है कि इसे जरूर भगवान ने बनाया होगा।” इसके बाद कॉफी यूरोप में छा गई। हालाँकि, यूरोप में इसे उगाने की कोशिशें नाकाम रहीं। तब पता चला कि कॉफी को विश्व रेखा equator के आसपास की एक खास बेल्ट में ही उगाया जा सकता है। यूरोपीय शक्तियों ने इसे भारत, ब्राजील और इंडोनेशिया जैसे देशों में ले जाकर खेती शुरू की। आज ब्राजील 1830 से कॉफी का सबसे बड़ा उत्पादक बना हुआ है।
कॉफी का वैश्विक फैलाव और बदलता स्वाद
आज दुनिया के 50 देशों में कॉफी उगाई जाती है, लेकिन इसे पीने वाले देशों की संख्या 100 से ज्यादा है। पारंपरिक रूप से चाय पीने वाले देश जैसे चीन, भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम में भी अब कॉफी की माँग तेजी से बढ़ रही है। कई लोगों को लगता है कि कॉफी पीकर वे वैश्विक मध्यम वर्ग का हिस्सा बन रहे हैं। इस बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए उत्पादन को दोगुना करना होगा, लेकिन चुनौती यह है कि कॉफी उगाने वाले ज्यादातर देशों में पैदावार घट रही है और जमीन की उर्वरता भी कम हो रही है।
2023 में कॉफी के दाम 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुँच गए। इंटरनेशनल कॉफी ऑर्गनाइजेशन (ICO) चेतावनी दे रहा है कि अगर यही हाल रहा तो कॉफी या तो इतनी महँगी हो जाएगी कि आम लोग इसे खरीद न सकें, या फिर यह मेन्यू से गायब हो जाएगी। दुनिया भर में कॉफी की 130 जंगली प्रजातियाँ खोजी जा चुकी हैं, लेकिन हम सिर्फ दो पर निर्भर हैं—अरबिका और रोबस्टा। ये दोनों मिलकर वैश्विक आपूर्ति का 99% हिस्सा बनाते हैं।
- अरबिका: यह कॉफी का “शाही” स्वाद है—हल्का, मधुर और फल जैसी खुशबू वाला। इसे 15-24 डिग्री तापमान और अच्छी बारिश चाहिए। लेकिन जलवायु परिवर्तन से बारिश का पैटर्न बिगड़ रहा है, जिससे अरबिका के प्लांटेशन खतरे में हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने इसे लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में डाल दिया है।
- रोबस्टा: यह सस्ता और कड़वा होता है, जो ज्यादातर इंस्टेंट कॉफी में इस्तेमाल होता है। यह मौसमी बदलावों को सहन कर लेता है, और इसका सबसे बड़ा उत्पादक वियतनाम है।
कॉफी का भविष्य: चुनौतियाँ और अवसर
विशेषज्ञों का कहना है कि 2050 तक कॉफी उगाने वाली आधी जमीन बंजर हो सकती है। ब्राजील, कोलंबिया, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे बड़े उत्पादक देश इसकी चपेट में होंगे। जलवायु परिवर्तन के कारण अमेरिका, चीन और अर्जेंटीना जैसे नए क्षेत्रों में कॉफी उगाई जा सकती है, और भारत में भी इसका उत्पादन बढ़ सकता है। लेकिन खतरा यह है कि नए प्लांटेशन जंगलों की कीमत पर न बनें। प्रोजेक्ट वॉटरफॉल के अनुसार, एक कप कॉफी के पीछे 140 लीटर पानी खर्च होता है। इस तरह कॉफी उगाने वाले देशों की जमीन और पानी दोनों संकट में हैं।
कॉफी का वैश्विक कारोबार 200 अरब डॉलर का है, लेकिन इसमें से सिर्फ 10% हिस्सा ही उत्पादकों तक पहुँचता है। बाकी यूरोप और अमेरिका की बड़ी कंपनियाँ ले जाती हैं। अरबिका के दाम न्यूयॉर्क में और रोबस्टा के लंदन में तय होते हैं। 25 करोड़ कॉफी किसानों को कड़ी मेहनत के बावजूद गरीबी और पलायन का सामना करना पड़ रहा है।
भारत के लिए सुनहरा मौका
भारत में कॉफी की खेती मुख्य रूप से कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में होती है। यहाँ की अरबिका और रोबस्टा की माँग वैश्विक बाजार में बढ़ रही है। अगर भारत उत्पादन बढ़ाए और टिकाऊ खेती पर ध्यान दे, तो वह इस संकट को अवसर में बदल सकता है। साथ ही, युगांडा और दक्षिण सूडान की “एक्सेलसा” जैसी प्रजातियाँ, जो जलवायु परिवर्तन को सहन कर सकती हैं, भारत में प्रयोग की जा सकती हैं।
स्वाद का जादू और एक सुझाव
कॉफी सिर्फ पेय नहीं, एक अनुभव है। अरबिका की मिठास हो या रोबस्टा की कड़वाहट, हर घूँट में एक कहानी है। लेकिन अगर हम चाय पर टिके रहें, तो कॉफी की बढ़ती माँग से पैदा होने वाले दबाव को कम किया जा सकता है। आखिर, एक कप चाय में भी तो पूरा हिंदुस्तान बसता है!
कॉफी का सफर बकरियों से शुरू होकर आज 3 अरब कप प्रतिदिन तक पहुँचा है। लेकिन इसका भविष्य अनिश्चित है। जलवायु परिवर्तन, घटती पैदावार और असमान मुनाफे ने इसे संकट में डाल दिया है। भारत जैसे देशों के पास मौका है कि वे इस चुनौती को अवसर में बदलें। तो अगली बार जब आप कॉफी का कप उठाएँ, इसके स्वाद के साथ-साथ इसके संघर्ष को भी याद करें।