उत्तराखंड का पारंपरिक फल ‘बेड़ू’, जिसे ‘पहाड़ी अंजीर’ के नाम से भी जाना जाता है, अब केवल स्थानीय जंगलों तक सीमित नहीं रहा। पौड़ी गढ़वाल जिले में ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना के तहत बेड़ू ने न केवल ग्रामीण महिलाओं के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता का रास्ता खोला है, बल्कि राष्ट्रीय बाजारों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने की दिशा में भी तेजी से अग्रसर है। यह कहानी न केवल एक फल की उन्नति की है, बल्कि उत्तराखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और महिलाओं के सशक्तिकरण की यात्रा की भी है।
पौड़ी शहर में स्थापित बेड़ू यूनिट के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की महिलाओं को एक नया मंच प्रदान किया है। इस परियोजना के तहत स्थानीय ग्रामीणों और महिलाओं से बेड़ू फल 50 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदा जा रहा है, जिससे जैम और चटनी जैसे उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। ये उत्पाद न केवल स्थानीय बाजारों में, बल्कि बाहरी बाजारों में भी खूब पसंद किए जा रहे हैं। जहां पहले बेड़ू के फल जंगली जानवर खा लेते थे या सड़कर नष्ट हो जाते थे, वहीं अब यह फल ग्रामीण महिलाओं के लिए आय का स्रोत बन गया है। कई महिलाएं पहली बार आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं और अपने परिवार की जिम्मेदारियों में सक्रिय योगदान दे रही हैं।
ग्रामोत्थान (रीप) के जिला परियोजना प्रबंधक कुलदीप सिंह बिष्ट के अनुसार, बेड़ू यूनिट ने पिछले तीन वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। 2023 में 500 किलो, 2024 में 1,450 किलो और 2025 में 2,500 किलो बेड़ू के प्रसंस्करण का लक्ष्य रखा गया है। इस वर्ष जून तक 950 किलो बेड़ू एकत्र किया जा चुका है। यूनिट द्वारा निर्मित बेड़ू चटनी की कीमत 160 रुपये और जैम की कीमत 150 रुपये निर्धारित की गई है। व्यापार के आंकड़े भी इसकी सफलता को दर्शाते हैं—2023-24 में 75,000 रुपये और 2024-25 में 3,75,000 रुपये का कारोबार दर्ज किया गया।
सबसे उल्लेखनीय कदम है बेड़ू उत्पादों को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग दिलाने की प्रक्रिया, जो अब अंतिम चरण में है। जीआई टैग मिलने से बेड़ू को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में एक विशिष्ट पहचान मिलेगी, जिससे इसकी मांग और मूल्य में और वृद्धि होगी। यह टैग न केवल बेड़ू के उत्पादों को ब्रांड वैल्यू प्रदान करेगा, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत को भी वैश्विक मंच पर ले जाएगा।
यह पहल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने और स्थानीय संसाधनों के उपयोग को बढ़ावा देने का शानदार उदाहरण है। बेड़ू यूनिट ने न केवल महिलाओं को रोजगार और आत्मनिर्भरता प्रदान की है, बल्कि उत्तराखंड के पारंपरिक फलों और जैविक उत्पादों को संरक्षित करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। विभिन्न स्वायत्त सहकारी समितियों को बेड़ू एकत्रीकरण का लक्ष्य सौंपकर इस परियोजना को और व्यापक बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जो उत्पादन और विपणन को और सुदृढ़ करेंगे।
हालांकि, इस पहल की दीर्घकालिक सफलता के लिए कुछ चुनौतियों पर ध्यान देना होगा। उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए और अधिक प्रशिक्षण, तकनीकी सहायता और विपणन रणनीतियों की आवश्यकता है। साथ ही, बेड़ू जैसे स्थानीय उत्पादों को बड़े पैमाने पर ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स और रिटेल चेन के साथ जोड़ने के लिए आपूर्ति श्रृंखला को और मजबूत करना होगा।
“बेड़ू” उत्तराखंड के ग्रामीण समुदायों की मेहनत, सरकार की दूरदर्शिता और स्थानीय संसाधनों के उपयोग का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। यह न केवल आर्थिक विकास की कहानी है, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर को संरक्षित करने और वैश्विक मंच पर ले जाने की कहानी भी है। ‘पहाड़ी अंजीर’ अब केवल एक फल नहीं, बल्कि उत्तराखंड की ग्रामीण महिलाओं के आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुका है।

