Friday, January 31, 2025
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गोवा में हुआ प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक डाॅ. बी.पी घिल्डियाल स्मृति व्याख्यान माला का आयोजन

(NTI, GOA): प्रोफेसर डॉ. बी.पी. घिल्डियाल भारतीय कृषि विज्ञान के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक और शिक्षक थे। उन्होंने मृदा विज्ञान (Soil Science) और कृषि भौतिकी (Agrophysics) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके अनुसंधान और शिक्षण ने भारतीय कृषि के विकास में एक गहरी छाप छोड़ी है।

स्मृति व्याख्यानभारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और इंडियन सोसाइटी फॉर एग्रोफिजिक्स (ISAP) द्वारा हर साल डॉ. बी.पी. घिल्डियाल स्मृति व्याख्यान आयोजित किया जाता है। यह व्याख्यान कृषि विज्ञान के उभरते विषयों पर केंद्रित होता है, जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), जलवायु परिवर्तन, और टिकाऊ कृषि। इस व्याख्यान श्रृंखला में प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक भी भाग ले चुके हैं।

गोवा। डाॅ. बी.पी घिल्डियाल स्मृति व्याख्यान आईसीएआर-केंद्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान गोवा में सम्पन्न हुआ। भारत में कृषि के सर्वोच्च सम्मान ( रफी अहमद किदवई पुरस्कार)से सम्मानित स्व० डाॅ० बी.पी घिल्डियाल स्मृति व्याख्यान में देशभर के वैज्ञानिक जुटे।

कृषि क्षेत्र में किसानों को बेहतर बीज , प्रबन्धन और उपज की तकनीकों को उपलब्ध कराने में मंथन किया गया।
आईसीएआर-केंद्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान गोवा व इंडियन सोसाइटी फाॅर एग्रोफिजिक्स द्वारा संयुक्त रूप आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार के अंतर्गत 11वें स्मृति व्याख्यान के मुख्य वक्ता डाॅ० एक.के सिंह ( कुलपति- रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी , उत्तरप्रदेश) ने बताया कि मौजूदा समय में खेतों में पैदावार कैसे बढाया जाय जिससे किसानों कि आय को दोगुना करा जा सके।

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इसके लिए वैज्ञानिकों के अनुसंधानों को खेतों तक पहुंचाने की प्राथमिकता होनी चाहिए । छोटी जोत के किसानों पर ज्यादा ध्यान देने कि जरूरत है। नई तकनीक को किसानों तक पहुंचाने से पहले अनुसंधान केंद्रों गहन अध्ययन होना चाहिए, डाॅ० सिंह ने बताया कि भारत में सब्जी व उद्यान का क्षेत्रफल बड़ा है। स्व०डाॅ० घिल्डियाल के पुत्र उदित घिल्डियाल ने परिवार की तरफ से व्याख्यान के आयोजकों व मौजूद सभी वैज्ञानिकों का धन्यवाद प्रकट किया। साथ ही सोसाइटी की तरफ से पांच लाख दान देने की घोषणा की।

कार्यक्रम में डा० एस.के चौधरी ( डी.डी.जी , आई.सी.आर ) , डाॅ० वाई.के शिवे ( अध्यक्ष- आई.स.ए.पी),डाॅ० प्रवीण कुमार ( निदेशक-आईसीएआर-केंद्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान गोवा)डाॅ० प्रगति प्रमाणिक, बंग्लादेश से डाॅ० देबाशीष चक्रबर्ती समेत तमाम वैज्ञानिक मौजूद रहे ।

आख़िर कौन थे डॉ. बी. पी. घिल्डयाल

डॉ. बी. पी. घिल्डयाल का जीवन भारतीय कृषि विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान और समर्पण की प्रेरणादायक कहानी है। 1945 में उन्होंने बी.एससी. (कृषि), 1947 में एम.एससी. (कृषि), और 1950 में डी.फिल. की उपाधि प्राप्त की। उनकी शिक्षा और शोध का सफर यहीं नहीं रुका। वे अमेरिका के प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनोइस, यू.एस. सैलिनिटी लैबोरेटरी, कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी, यूटाह स्टेट यूनिवर्सिटी और यू.एस. डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर में मृदा भौतिकी, सिंचाई और जल निकासी पर पोस्ट-डॉक्टोरल अनुसंधान करने गए।

1951 में उन्होंने गवर्नमेंट एग्रीकल्चरल कॉलेज, कानपुर में सहायक प्राध्यापक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। उनका मेहनती स्वभाव और गहन ज्ञान उन्हें 1956 में आईआईटी खड़गपुर के मृदा विज्ञान विभाग का प्रमुख बना गया। इसके बाद 1968 में वे जी. बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर के मृदा विज्ञान विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर बने। 1976 में वे इस विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय के डीन के रूप में नियुक्त हुए। उनकी उत्कृष्टता को मान्यता देते हुए 1979 में उन्हें प्रोफेसर ऑफ एमिनेंस का पद दिया गया, जहां उन्होंने राष्ट्रीय मृदा-पानी-पौधा अनुसंधान केंद्र का नेतृत्व किया।

वैश्विक मंच पर प्रतिनिधित्व

1982 में डॉ. घिल्डयाल फोर्ड फाउंडेशन, नई दिल्ली में कृषि अनुसंधान के कार्यक्रम अधिकारी के रूप में शामिल हुए और अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) के वैज्ञानिक के रूप में भी काम किया।

योगदान और सम्मान

डॉ. घिल्डयाल ने चावल के पौधे के भौतिक पर्यावरण को बेहतर समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके इसी योगदान को मान्यता देते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने 1970-71 में उन्हें रफी अहमद किदवई मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया।

शिक्षण और शोध में प्रभाव

अपने 35 वर्षों के शिक्षण करियर में, उन्होंने 25 से अधिक पीएचडी छात्रों का मार्गदर्शन किया और भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में 150 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित किए। उनके छात्र और सहकर्मी उनके ज्ञान और सादगी के लिए आज भी उन्हें याद करते हैं। डॉ. बी. पी. घिल्डयाल का जीवन इस बात का प्रमाण है कि कड़ी मेहनत, समर्पण और ज्ञान के प्रति प्रेम से न केवल खुद को, बल्कि समाज और देश को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। उनकी विरासत आज भी कृषि विज्ञान के क्षेत्र में मार्गदर्शन का स्रोत बनी हुई है।

    • डॉ. घिल्डियाल ने मृदा भौतिकी के क्षेत्र में गहन शोध किया। उनकी सह-लेखित पुस्तक “Soil Physics” (1987) और “Soil Structure: Problems and Management” (2002) इस विषय पर प्रमुख संदर्भ मानी जाती हैं। इन पुस्तकों ने मृदा की संरचना, उसकी समस्याओं और प्रबंधन पर गहन जानकारी प्रदान की है
    • उन्होंने हिमालयी क्षेत्रों में मृदा क्षरण और संरक्षण से संबंधित समस्याओं पर काम किया। उनकी अनुसंधान विधियों ने टिकाऊ कृषि विकास और पारंपरिक कृषि जैव विविधता प्रबंधन को बढ़ावा दिया, जिससे पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि नीति और भूमि उपयोग में सुधार हुआ।
    • डॉ. घिल्डियाल घिल्डियाल एक उत्कृष्ट शिक्षक थे, जिन्होंने छात्रों और शोधकर्ताओं को प्रेरित किया। उनके मार्गदर्शन में कई वैज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कीं। वे छात्रों को मृदा विज्ञान के आधुनिक सिद्धांतों से परिचित कराने के लिए समर्पित रहे । 
    • डॉ. बी.पी. घिल्डियाल का कार्य भारतीय कृषि विज्ञान के लिए एक मजबूत आधारशिला है। उनकी शिक्षाएं, अनुसंधान, और दृष्टिकोण न केवल वैज्ञानिक समुदाय बल्कि किसानों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके योगदान को स्मरण करते हुए आयोजित स्मृति व्याख्यान उनके विचारों को आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
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