छत्तीसगढ़ की वर्तमान सरकार भले ही 14 साल बेमिसाल के गुणगाती रही हो, लेकिन राज्य अब नकारात्मक मामलों में भी बेमिसाल बनता जा रहा है. कभी अपनी कला और संस्कृति और 36 गढ़ों के कारण कारण देश दुनिया में जाने जाना वाला छत्तीसगढ़ अब बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था की वजह से जाना जा रहा है.
डॉक्टर मुखिया होने के बाद भी छत्तीसगढ़ अब बीमारगढ़ बन गया है. बालोद, दुर्ग के साथ राजनांदगांव में हुए आंखफोड़वा कांड, गर्भाशय कांड, स्मार्टकार्ड घोटाला, बिलासपुर में नसबंदी शिविर में प्रसुताओं के साथ सामान्य महिलाओं की मौत, सुपेबेड़ा में किड़नी खराब होने से हो रही लगातार मौतें, बस्तर में मलेरिया और उल्टी दस्त के साथ जापानी बुखार का कहर कौन भूल सकता है.
राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल मेकाहारा में बदहाली के चलते आए दिन मरीजों की मौत के अलावा इस राज्य में हर साल पीलिया से हो रही मौतों ने अब छत्तीसगढ़ के माथे पर ऐसे दाग दिए हैं, जिससे यह राज्य अब बीमारगढ़ के रूप में अपनी पहचान बना चुका है.
7 दिसंबर 2003 में जब डॉ. रमन सिंह ने सबसे पहले मुख्यमंत्री की शपथ ग्रहण की थी, तब लोगों को सबसे ज्यादा उम्मीदें स्वास्थ्य क्षेत्र में विकास को लेकर थी. राज्य के लोगों को उम्मीद थी कि चूंकि राज्य के मुखिया डॉक्टर हैं ऐसे में वो राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की नब्ज सबसे पहले पकड़ पाएंगे. ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में बिल्कुल काम नहीं किया. काम किया, लेकिन इसके साथ हीं एक से बढ़कर एक हेल्थ स्कैण्डल भी इस राज्य की पहचान हो गए हैं. पीलिया पर जो भयावह स्थिति हुई वह सरकार की उदासीनता का एक और उदाहरण है. स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने में सरकार नाकाम साबित हो रही है.
हालांकि सूबे के मुखिया डॉ. रमन सिंह हर बार ऐसे कांड के बाद सख्ती और व्यवस्था सुधार की बात करते हैं. हाल ही में पीलिया से हुई मौतों के बाद हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाई और व्यवस्था दुरुस्त करने कहा. इसके बाद सीएम डॉ. रमन सिंह ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश का पालन किया जाएगा.
डॉक्टर मुखिया के राज्य के प्रमुख स्वास्थ्य कांड
-2011 में 42 लोग बालोद के सरकारी अस्पताल में मोतियाबंद के ऑपरेशन से अंधे हो गए थे. इसी के बाद दुर्ग जिला अस्पताल में भी मोतियाबिंद के ऑपरेशन से सात मरीजों की आंख खराब हो गई थी.
-बिलासपुर के पेंडारी नसबंदी शिविर में 2013 में लगभग 17 महिलाओं की मौत
-बहुचर्चित गर्भाशय कांड, जिसमें रायपुर के साथ प्रदेश में निजी अस्पतालों ने सैकड़ों महिलाओं के गर्भाशय निकाल लिए गए थे.
-साल 2014 में पीलिया से केवल राजधानी रायपुर में ही 28 मौतें हुई थी. यह सरकारी आंकड़ा था जबकि निजी अस्पतालों के आकड़ें और बढ़ सकते हैं. बस्तर समेत राज्य के कई हिस्सों में डेंगू और मलेरिया से हर साल दर्जनों मौतें आम हैं.
-अगस्त 2017 में मेकाहारा अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई नहीं होने से छह नवजात बच्चों की मौत
-गरियाबंद के सुपेबेड़ा में पिछले डेढ़ साल में 65 लोगों की कीडनी खराब होने से मौत
-फरवरी 2018 में राजनांदगांव के क्रिश्चयन हॉस्पीटल में 35 लोगों की आंखे चली गई.
-मार्च 2018 से अब तक राजधानी रायपुर में पीलिया की बीमारी से 200 से अधिक लोग प्रभावित हैं. इनमें से 4 गर्भवति महिलाएं सहित छह लोगों की मौत हो चुकी है.