देहरादून, : झाझरा में जमीनों के फर्जीवाड़े का अपनी तरह का अनूठा मामला सामने आया है। यहां मौके पर करीब 100 बीघा जमीन है, मगर उसे कागजों में 200 बीघा बताकर बेच दिया गया है। सीमा से अधिक जमीनों के कागज बन जाने से झाझरा में गोल्डन फॉरेस्ट (राज्य सरकार में निहित) व ग्राम समाज की जमीन पर कब्जे की नौबत आ गई है। इस आशंका से घिरे प्रशासन ने एक खसरा नंबर की खरीद-फरोख्त पर रोक तो लगा दी है, मगर धरातल पर भूमाफिया की सक्रियता पर लगाम लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे। इस निष्क्रियता के चलते आसन नदी से सटी जमीन पर रातों-रात करीब 500 मीटर की दीवार खड़ी कर दी गई। प्रशासन ने शुक्रवार को इसके एक हिस्से पर जेसीबी तो चलाई, मगर फिर कदम पीछे खींच लिए।
गंभीर यह कि प्रशासन भी इस पर तब हरकत में आया जब, जमीनों के खेल की शिकायत मुख्य सचिव व गढ़वाल मंडलायुक्त से की गई। प्रारंभिक जांच में ही प्रशासन ने पाया कि 100 बीघा की जमीन के 200 बीघा होने के कागजात तैयार किए जाने के बाद अभी यह स्पष्ट नहीं है कि भूमाफिया ने निजी भूमि से इतर कितनी और भूमि पर कब्जा कर लिया है। जबकि, राज्य सरकार में निहित गोल्डन फॉरेस्ट के चार खसरा नंबर (1037, 1041क, 1042ख व 1059ग) पर कब्जे के प्रमाण मिल चुके हैं।
अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) अरविंद कुमार पांडेय के अनुसार, मामले की गंभीरता को देखते हुए संबंधित क्षेत्र की सभी भूमि की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाई जा रही है। साथ ही प्रकरण की जांच एसडीएम विकासनगर को दी गई है। जमीन की स्पष्ट पैमाइश के बाद सब स्पष्ट हो जाएगा।
दीवार बनाने के लिए खेल
अभी प्रशासन तक जमीनों की स्थिति स्पष्ट नहीं कर पाया है, जबकि इस खेल में मिलीभगत कर करीब 500 मीटर दीवार भी बना दी गई। इसके लिए ग्रामसभा का भी सहारा लिया गया है, एक निजी संस्थान ने सीएसआर (कारपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिब्लिटी) फंड से करीब 10 लाख रुपये ग्रामसभा के खाते में ट्रांसफर किए और फिर उससे दीवार निर्माण शुरू कर दिया गया। पहले प्रशासन ने दीवार बनने दी और जब शिकायत उच्चाधिकारियों तक पहुंची तो उसका एक हिस्सा तोड़कर कर्तव्यों की इतिश्री भी कर डाली।
एक ही खसरा नंबर पर रोक
झाझरा में जमीनों की खरीद-फरोख्त में चार खसरा नंबर पर विवाद की स्थिति पैदा हो गई है, जबकि प्रशासन ने सिर्फ 1156 नंबर पर ही रोक लगाई है। ऐसे में प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं।
कब्जे पर भी सवाल
जमीन के गोरखधंधे का यह खेल पुराने खसरा नंबर से नया खसरा नंबर बनाने के दौरान किया गया। पहले संबंधित जमीन के पुराने खसरा नंबर 578, 573, 584, 531 दूसरे स्थान पर थे, मगर जब इनके नए नंबर 1156, 1160, 1163 व 1162 जारी किए गए तो कब्जा किसी और जगह दे दिया गया। क्योंकि पुराने खसरा नंबर वाली भूमि दरियाबुर्द (जलमग्न) और भी इसी श्रेणी में मौजूद है।
श्रेणी परिवर्तन का नहीं था अधिकार
पुराने रिकॉर्ड में यह भूमि दरियाबुर्द थी और वर्ष 1998 में तत्कालीन सहायक अभिलेख अधिकारी ने इसका श्रेणी परिवर्तन कर काश्तकारी के रूप में कर दिया। जबकि यह अधिकार सिर्फ परगानाधिकारी (उप जिलाधिकारी) को प्राप्त है। लिहाजा, ऐसे में भूमि के मालिकाना हक पर ही सवाल खड़े हो गए हैं।