देहरादून : गंगा-यमुना जैसी सदानीरा नदियों के उद्गम स्थल उत्तराखंड के 17576 गांव-मजरों की पेयजल किल्लत ने राज्य सरकार की पेशानी पर बल डाले हुए हैं। हालांकि, अभावग्रस्त बस्तियों के लिए एनआरडीडब्ल्यूपी के जरिये केंद्र से बजट मिलता है, लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। इसे देखते हुए अब राज्य सरकार ने विश्व बैंक की शरण में जाने की ठानी है। इसके लिए 1100 करोड़ रुपये का प्रस्ताव विश्व बैंक को भेजा जा रहा है। सरकार को उम्मीद है कि यह राशि मिलते ही सभी गांव-मजरों की पेयजल किल्लत के निदान को प्रभावी कदम उठाए जा सकेंगे।
प्रदेश के गांव-मजरों में पेयजल के हालात कैसे हैं, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) के आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। प्रदेश के 39282 गाव-मजरों में से करीब 56 फीसद यानी 21706 में ही मानक के अनुसार रोजाना 40 लीटर प्रतिव्यक्ति के हिसाब से पानी की उपलब्धता है। शेष 17576 गाव-मजरों के ग्रामीण जैसे-तैसे हलक तर कर रहे हैं। इनमें भी 5588 ऐसे गांव-मजरे हैं, जहा पेयजल की उपलब्धता न के बराबर है। गांवों में पेयजल की इस स्थिति से सरकार की पेशानी पर भी बल पड़े हैं। बजट का अभाव पेयजल किल्लत से निजात दिलाने की दिशा में रोड़े अटका रहा है।
इसके अलावा राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) से मदद मांगने के साथ ही दूसरी बाह्य सहायतित योजनाओं पर भी सरकार की नजरें हैं, ताकि 2022 तक हर घर को पेयजल मुहैया कराने का सपना साकार हो सके।
पेयजल मंत्री प्रकाश पंत का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की समस्या को लेकर सरकार गंभीर है। इस कड़ी में वित्तीय संसाधन जुटाने पर फोकस है। विश्व बैंक को 1100 करोड़ का प्रस्ताव भेजा जा रहा है। इसके मंजूर होने पर काफी हद तक राहत मिल जाएगी। जहां कुछ कमी बेशी रह जाएगी, उसके लिए अन्य बाह्य सहायतित योजनाओं से धन की व्यवस्था की जाएगी। हमारी कोशिश है कि 2022 तक पेयजल समस्या का पूरी तरह निदान कर दिया जाए।