कपकोट, बागेश्वर : एक गाँव है कपकोट तहसील में पड़ने वाला बटाल गाँव सौराली। जैसा कि आप तस्वीरों में देख रहे हैं यहाँ जमकर खड़िया खनन हो रहा है। जेसीबी से भी बड़ी पोकलैंड मशीन लगाकर यहाँ पहाड़ को छलनी किया जा रहा है। यहाँ के जागरूक स्थानीय निवासियों ने बताया कि खड़िया खनन से यहाँ के लोगों का जीना मुहाल हो रहा है। उनका कहना है कि गाँव तक आने वाला रास्ता गायब हो गया है। ग्रामीणों का ये भी कहना है कि बड़ी मात्रा में हो रहे खनन से जंगल,जल और खेती पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। खनन से उठने वाली धूल लोगों के घरों में फ़ैल जाती है जिससे भी उनको तमाम तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यही नहीं ग्रामीणों का कहना है कि कई मकानों में दरारें भी पड़ गई हैं’। वहीँ कुछ अ ये भी कहना था कि ये खानें बीजेपी से जुड़े लोगों की हैं इसलिए कोई देखने भी नहीं आता और न ही उनकी सुनवाई होती ।
मसला वैध और अवैध खनन से जुड़ा नहीं है बल्कि इस बात का है कि फिलहाल तो बागेश्वर की सोना उगलने वाली खड़िया खानों से सरकार राजस्व कम रही है लेकिन जब इस जैसे सैकड़ों खनन प्रभावित गांवों की जड़ें यूँ खोद दी जाएंगी तो कितनी भयावह आपदा आ सकती है ये कल्पना करना मुश्किल है । बागेश्वर जिला जोन फाइव में आता है जो भूकंपीय दृष्टि से अतिसंवेदनशील है। खनन क्षेत्र के आस-पास भूस्खलन के कारण पुंगर घाटी, कांडा, कपकोट, खरेही पट्टी के 42 गांव खतरे की जद में हैं। कहीं प्राकृतिक तो कहीं मानव जनित कारणों से गांवों पर खतरे हर साल बढ़ते जा रहे हैं। हालात यह हैं कि हर साल लाखों टन खड़िया निकालने से पहाड़ के गांव धीरे-धीरे खोखले होते जा रहे हैं।
बागेश्वर जिले के रीमा से लेकर कांडा तक सोप स्टोन पाया जाता है। इसके कारोबार ने भले ही इससे जुड़े लोगों को समृद्ध किया हो, लेकिन दशकों से हो रहे खनन के कारण अब गांवों की बुनियाद खोखली हो गई है। आबादी से दूर नाप खेतों में होने वाला खनन धीरे-धीरे घरों तक पहुंच रहा है। इससे कई स्थानों पर गांवों को खतरा पैदा हो रहा है। खड़िया निकालने के बाद बने विशाल गड्ढों में दुर्घटनाएं होती रहती हैं। हाल के वर्षों में मशीनों का प्रयोग बढ़ने से खतरे भी बढ़ रहे हैं।
साल 2017 में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साॅइल एंड वाटर कंजरवेसन, इंडियन ब्यूरो ऑफ माइनिंग, आइआइटी रुड़की, सेंट्रल पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड नई दिल्ली, इंडियन काउंसिल ऑफ फारेस्ट्री रिसर्च एंड एजूकेशन और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के सीनियर साइंटिस्ट वाली सात सदस्यीय टीम ने जिले भर में चल रही खड़िया खदानों का निरीक्षण कर एनजीटी को रिपोर्ट सौंपी।
रिपोर्ट में खड़िया खदान के कारण पर्यावरण और वनों को होने वाले नुकसान, भूस्खलन की संभावनाएं, पेयजल स्त्रोत सूखने, मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव, खनन में मशीनों के प्रयोग से होने वाले नुकसान आदि की बात सामने आई। जिस पर कार्रवाई के एनजीटी ने निर्देश दिए थे। लेकिन उसके बावजूद खनन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। आज भले ही ये खानें चन्द लोगों के लिए सोना उगल रही हों लेकिन आने वाला समय स्याह होना तय है ।