देहरादून : मानकों पर खरे नहीं उतरने वाले उत्तराखंड के कई इंजीनियरिंग कॉलेजों पर बंदी की तलवार लटक गई है। ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआइसीटीई) ने ऐसे संस्थानों को बंद करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके लिए देशभर में 200 इंजीनियरिंग कॉलेजों को चिह्नित किया जा रहा है। इन सब स्टैंडर्ड कॉलेजों के बंद होने से 80 हजार इंजीनियरिंग की सीटें कम हो जाएंगी।
उत्तराखंड में करीब 135 इंजीनियरिंग कॉलेजों में 20 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं विभिन्न तकनीकी कोर्सों में शिक्षा ले रहे हैं। राज्य के करीब 40 फीसद इंजीनियरिंग कॉलेजों में फैकल्टी पूरी नहीं है। साल दर साल इन कॉलेजों में छात्रों की संख्या घटती जा रही है। टनकपुर स्थित इंजीनियरिंग कॉलेज को ही ले लीजिए, यहां एक भी स्थायी शिक्षक नहीं है।
विभिन्न इंजीनियरिंग कोर्सों का पाठ्यक्रम अस्थायी शिक्षकों के भरोसे चल रहा है। इतना ही नहीं, उत्तराखंड तकनीकी विवि (यूटीयू) से संबद्ध कई निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों के पास अपने भवन तक नहीं हैं। इनमें न पर्याप्त फैकल्टी है और न ही लैब और पुस्तकालय की सुविधा। जिसके कारण उत्तराखंड के कई इंजीनियरिंग कॉलेजों में छात्रों की संख्या घट रही है। विशेषज्ञों की मानें तो इंजीनियरिंग कोर्स के प्रति छात्रों का रुझान कम हो रहा है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए फैकल्टी के साथ-साथ इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग की सुविधा भी जरूरी है।
कुलपति (यूटीयू) डॉ. यूएस रावत का कहना है कि ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआइसीटीई) की ओर से मानक पूरा नहीं करने वाले संस्थानों को बंद करने का कोई पत्र नहीं मिला है। देशभर में इंजीनियरिंग कॉलेजों में साल-दर साल दाखिले की संख्या कम हो रही है, यह बात सही है। उत्तराखंड में कई इंजीनियरिंग कॉलेजों में फैकल्टी के अलावा आधारभूत सुविधा की भी कमी है। एआइसीटीई की गाइडलाइन का अध्ययन किया जाएगा।
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