यह विडंबना ही है कि ईमानदारी और शुचिता की दुहाई देने वाली आम आदमी पार्टी के राज्यसभा के दो उम्मीदवारों का चयन नकद नारायण की कृपा के आधार पर होने के आरोप लग रहे हैं। यह वही पार्टी है जिसने देश की जनता को विश्वास दिलाया था कि उसके लोग क्रांति लाएंगे और भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिटा देंगे। जनांदोलन से निकली ऐसी पार्टी ही जब जनता के साथ विश्वासघात करेगी तो फिर जनता किस पर भरोसा करेगी?
गौरतलब है कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के बाद देश में कोई बड़ा आंदोलन हुआ तो वह अण्णा हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन था। इस आंदोलन ने देश भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता के गुस्से को आवाज और दिशा दी। जनता ने अण्णा हजारे और अरविंद केजरीवाल का भरसक समर्थन किया था। नतीजतन, तत्कालीन सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था। इस आंदोलन को राजनीतिक प्रभावों और व्यक्तियों से मुक्त रखने का प्रयास किया गया। तमाम पार्टियों के नेताओं के साथ मंच साझा करने से मना कर दिया गया था। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने आंदोलन के बीच से ही आम आदमी पार्टी के गठन का ऐलान कर दिया। पिछले पांच सालों में आम आदमी पार्टी पर अनेक आरोप लगे। कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसे अनेक नेताओं ने पार्टी प्रमुख के तानाशाही रुख की आलोचना की।
यदि पार्टी के पिछले पांच सालों के इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि इसके मुखिया बहुत ही लचीले उसूलों वाले व्यक्ति मालूम पड़ेंगे। उन्होंने जब भी जिस बात की मनाही की, कुछ समय बाद खुद वही काम करते नजर आए। मसलन, उन्होंने कहा था कि वे राजनीति नहीं करेंगे, लेकिन पार्टी बनाई और फिर मुख्यमंत्री भी बने। उन्होंने ईमानदार उम्मीदवारों को ही टिकट देने का वादा किया था लेकिन उम्मीदवार तो दिखे, पर ईमानदार नहीं। यदि ऐसा ही चलता रहा तो जनता जिस लचीलेपन को दिखाते हुए आम आदमी पार्टी को चुन कर लाई थी उसी लचीलेपन के साथ इस पार्टी का दामन छोड़ सकती है। आम आदमी पार्टी का यह लचीलापन दरअसल जनता के साथ गद्दारी है। लचीलापन अच्छा है, पर उसूलों के मामले में इसे पाखंड या दोहरा चरित्र कहा जाता है।